भारत में 'हलाल सर्टिफाइड' फूड की मनमानी

मानव विकास में शरुआती खान-पान मांस आहार ही था, खुद मारकर कच्चा मांस ही खाया जाता था, 
धीर-धीरे बाक़ी चीजें इसमें जुड़ती गईं... विकास के साथ प्रकृति की वो खाने की वस्तुएं भी जुड़ती गईं, जिसके लिए मनुष्य को ज्यादा परिश्रम करना पड़ता था, इसके बाद खान-पान की आदतों में बदलाव आने लगा, वर्गीकरण मांसाहारी और शकाहारी का होता चला गया...



वक्त बीतने के साथ-साथ मांस खाने के नियम बने और समाजों ने उनके मुताबिक जानवरों को मारने का तरीका अपने हिसाब से ईजाद कर लिया... इसमें किसी को कोई आपत्ति भी नहीं, हो भी क्यों ? 

सभी समाजों में ख्याल ये रखा जाने लगा कि जिस जानवर को जीभ के लिए क़ुर्बान किया जा रहा है, उसे कम से कम तकलीफ हो... इसके बाद जानवरों को मारने के कई मॉड्यूल विकसित होते चले गए... इस पर भी किसी को कोई आपत्ति नहीं।
सभी देशों ने अपने हिसाब से और प्राकृतिक संतुलन के विश्व मानको को नज़र में रखते हुए अपने-अपने मानक तैयार कर लिए... समय बीतने के साथ खाड़ी देशों में इस्लाम जन्म लेता है और वहां जानवरों को मारने के दुनिया में प्रचलित नियमों से अलग नियम बनाए जाते हैं... चुंकि इस पूरे इलाके में कबिलाई कल्चर ही हावी था, लोग अनपढ़ थे, ज्यादा समझ थी नहीं उन्हें, लिहाजा उनकी जो समझ में आ सकता है, उस हिसाब से जानवर मारने के नियमों को प्रतिपादित किया गया... जिसका नाम ‘हलाल’ रख दिया और क़ुरान में ऐसा है, शरिया में लिखा है-ऐसा प्रचारित किया गया और इस्लाम को मानने वाले उसे मानने लगे... हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं, होनी भी क्यों चाहिए... सभी को अपने हिसाब से जीने और खाने-पीने का हक़ है...
लेकिन____________________________________________________________________
दूसरे धर्म को मानने वालों पर अपना ‘हलाल सर्टिफिकेट’ कोई कैसे थोप सकता है… जी हां भारत में चुपके से, बिना किसी को बताए खाने-पीने के उत्पादों पर ‘हलाल’ का ठप्पा लगाकर बेचा जाने लगा है,
Snack Food Association, Fssai के साथ Halal भी लिखा हुआ था। इसे देखने के बाद सवाल उठना और उठाना लाजिमी था...
फिर वो चाहे मांसाहार हो या फिर शाकाहारी वस्तु ही क्यों ना हो, कलमा पढ़कर आपको बिना बताए चीजें बेची जा रही हैं, खिलाई जा रही हैं... इसमें केवल मुसलमान ही शामिल नहीं हैं बल्कि वो सूदखोर, मुनाफाखोर हिंदू व्यापारी भी शामिल हैं जो खुद को धर्मभीरु बताते थकते नहीं हैं... ये भी मुझे अचानक पता चला जब मेरे बड़े भाई ने बताया, जो कि इस वक्त हमारे बीमार पिताजी के साथ दिल्ली से सटे कौशांबी के मैक्स हॉस्पिटल में कई दिन से मौजूद हैं। पर्याप्त समय होने की वजह से उनका ध्यान इस पर चला गया, जब उन्होंने एक चिप्स का पैकेट खरीदकर खाया...
डस्टबिन तक जाने में हुई देरी ने ये खुलासा करवा दिया... पैकेट को ध्यान से देख रहे थे कि अचानक उनकी निगाह Halal लिखे सिंबल पर पड़ गई....
आखिर एक Multi cultural देश में कोई ऐसा कैसे कर सकता है ? इसकी इजाज़त आखिर किसने दी ? किसी ने कैसे इसका विरोध नहीं किया, क्यों दूसरे धर्म को मानने वालों को जबरन Halal सर्टिफिकेट वाला कुछ भी बिना बताए खिलाया जा रहा है। क्या गारंटी है कि हलाल सर्टिफिकेट वाले किसी वैजिटेरियन आइटम में कोई मांस ना मिलाया गया हो ? ऐसा मैक-डोनल्ड पहले कर चुका है।
हलाल सर्टिफिकेशन का मतलब ही है कुरान से कलमा पढ़कर प्रोडक्ट बनाने के बाद फिर उसे बाज़ार में उतारा जाए, किसी हिंदू या किसी और को भी कैसे कलमा पढ़ा प्रोडक्ट खाने को दिया जा सकता है, इसमें आपत्ति इस बात की है कि ये काम चोरी-चोरी हो रहा है, जिसे बैक एंट्री से जबरन घुसाया जा रहा है।
 जबकि ये ग्राहक का अधिकार है कि उसे पता होना चाहिए कि वो क्या खा रहा है ? बेशक फिर वो आइटम शाकाहारी ही क्यों ना हो।
ये अंतराष्ट्रीय सिंबल है
मज़हबी राजनीतिक जमातों ने पहले बहुत कुछ बांट दिया है, अब खान-पान को भी बांटने पर आए हैं वो भी चोरी-छिपे... और सहारा लिया है हलाल सर्टिफेकिकेशन... इस हलाल सर्टिफिकेट के चलन की प्रवृत्ति को तुरंत कुचलने की ज़रूरत है... यदि ऐसा नहीं किया गया तो आप किस मुंह से संभावित ‘झटका सर्टिफिकेशन’ की उठने वाली मांग को खारिज़ कर पाएंगे...
किसी भी लोकतांत्रिक, धर्म निरपेक्ष देश में इस तरह के चलन को रोकना ही होगा... नहीं तो फिर ‘झटका सर्टिफिकेशन’ ‘जैन सर्टिफिकेशन’ ‘बौद्ध सर्टिफिकेशन’ ‘सिख सर्टिफिकेशन’ की उठने वाली मांग को कैसे नाज़ायज ठहरा जा सकेगा...
 दुनियाभर में हलाल सर्टिफिकेशन का जबर्दस्त विरोध हुआ है... हमारे यहां भारत में जब किसी को पता ही नहीं है तो विरोध होने का मतलब ही नहीं है... लेकिन इस तरह की बातें आखिर कितने दिन तक छिपाई जा हैं ? 
ऑस्ट्रेलिया में इसके ख़िलाफ़ 2014 से मूवमेंट चल रहा है, कनाडा ने इस सर्टिफिकेशन को अपने यहां घुसने ही नहीं दिया... ब्रिटेन में घुस गया है तो जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ रहा है... हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका में भारी विरोध के बाद सरकार को हलाल सर्टिफिकेशन को प्रतिबंधित करना पड़ा है।
अब भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इसके विरोध की तैयारी है, संभव है जिसे तुरंत मान भी लिया जाए...


बिल्कुल खुलेआम बिक्री जारी है

इस सिंबल के साथ विरोध किया जा रहा है


ये सर्टिफिकेट है जो दिया जा रहा है

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