धर्मनिरपेक्षता हमारा धर्म आखिर कैसे ?
धर्मनिरपेक्षता को समझाने के लिए हमारे योग्य नेतृत्व ने हमारे सामने बखूबी उदाहरण पेश किए...और जिसे भारत ने अपनी संस्कृति का हिस्सा बनाया, हमने भी उसे उसी उदात्त रुप में लिया...जहां पंडित जी ने इसका मतलब सभी धर्मों के प्रति तटस्थता के रूप में हमारे सामने रखा, गांधी जी ने उसी को धर्मों के प्रति धार्मिक समभाव के रूप में हमारे सामने रखा और डॉक्टर राधाकृष्णन ने उसी की परिभाषा को और व्यापक आयाम देकर हमारे सामने जिस रूप में रखा, उसने हमारा सोचने का दायरा आसमान की तरह व्यापक बना दिया... आज उसी विचार को एक ऐसा युवा नेतृत्व सभी को जोड़ने की बात कहकर बड़ी सहजता से सभी को साथ लेकर चलने का साहसिक प्रयास कर रहा है...क्या हमें उस सोच को आगे बढ़ाने के लिए सागर में बूंद का प्रयास नहीं करना चाहिए... मैं और आप मिलकर बनेंगे हम...बस इस सूत्र को हमें किसी तरह उलझने से बचाना है और इसकी चमक को चांदी की धार की तरह चमकाना है... हमें ऐसा ही नेतृत्व चाहिए जो जटिल ना होकर सहृदय और सभी को साथ लेकर चलने वाला हो...जिससे बात करने में किसी को आतंकित न होना पड़े...आपको अपनी बात कहने के लिए पूरा खुला वातावरण मिल जाए...