गैलिलियो _________________________________________जिसने बदल दी दुनिया, तोड़ दिए भ्रम
गैलिलियो
_________________________________________जिसने
बदल दी दुनिया,
तोड़
दिए भ्रम
टीवी
पर सूर्यग्रहण को दिखाने के
लिए एक स्क्रीन पर कई सारे
विंडो दिखाए जे रहे हैं...सभी
में देश विदेश में होने वाले
सूर्यग्रहण को दिखाया जा रहा
है...ये
भी बताया जा रहा कि ऐसा ग्रहण
अब एक हज़ार साल बाद ही देखने
को मिलेगा...
(एक
छोटा सा परिवार अपने दो छोटे
बच्चों के साथ टीवी देख रहा
है...छोटा
बच्चा जो कि 12-13
साल
का है...अपने
पिता से पूछता है...इस
एपिसोड में पिता और बेटे ही
एंकर की भूमिका में होंगे...)
बेटा-
पापा
एक बात तो बताओ...
पिता-
हां
पूछो...
बेटा-
पापा
ये जो सोलर एक्लिप्स है...जिसे
सूर्यग्रहण भी कहते हैं-
ये
हमारी अर्थ और
सूरज
के बीच चांद के आने से होता
है...ये
तो हमें पता है...इसलिए
हमारे लिए ये आम
बात
है और एस्ट्रॉनोमी के लिए भी
एक आम बात ही है...मगर
जब लोगों को ये पता
नहीं
होगा कि धरती सूरज के चक्कर
लगाती है और चांद धरती के...तब
क्या आदमी
इस
तरह के ग्रहण से डरता नहीं
होगा ?
पिता-
क्या
बात है बेटा, मुझे
तो लगता था कि तुम हमेशा कार्टून
में ही मस्त रहते हो...
मां-
तुम्हें
तो मेरा बेटा बस यूं ही लगता
है, मेरा
बेटा, राजा
बेटा है...
बेटा-
अरे
मम्मी बड़ी सीरियस बात है,
आप
इसे सीरियस ही रहने दो...प्लीज़ज़ज़...
मां-
ठीक...ठीक
है...
पिता-
अभी
तो इस तरह की बात करनी और सोचनी
आसान लग सकती है...लेकिन
उस
वक्त
जब लोग ये मानते थे कि सूरज
धरती के चक्कर लगाता है और इस
तरह दिन रात
बनते
हैं...तब
इस तरह की बाते सोचना ज्यादा
चैलेंजिंग और मुश्किल था...तब
खाली
सूर्यग्रहण
ही नहीं बल्कि उन तमाम बातों
से आदमी डरता था...जिसके
बारे में उसकी
जानकारी
लिमिटेज थी...
बेटा-
मतलब...
जब
लोग ये मानते रहे होंगे कि
धरती के इर्द गिर्द सूरज चक्कर
काट
रहा
है...ऐसे
लोगों को ये समझाने के लिए कि
भई ऐसा नहीं है...सूरज
तो अपनी जगह
पर
फिक्स है, बल्कि
हम ही उसके चक्कर काट रहा रहे
हैं...मुश्किल
तो रहा होगा पापा...
पिता-
मुश्किल
ही नहीं बेटा...नामुमकिन
जैसा था...अब
इसे समझने के लिए 400
साल
पहले
जाना होगा...
बेटा-
वो
कैसे ?
(कैलेंडर
पर 1564 से
शुरु होकर 2010 तक
पहुंचते हैं-बैकग्राउंड
में तरह तरह की आवाज़ें...झूठ
बोल रहा है ऐसा नही हो सकता...ये
हमारे यक़ीन के खिलाफ़ है...ये
बचना नहीं चाहिए..धर्म
द्रोही...)
वी
ओ-1,
यूरोप
में वैज्ञानिक क्रांति मचाने
का काम आखिर किसने किया
? आखिर
किसे आधुनिक
खगोल
विज्ञान और भौतिकी का पिता
कहा गया ? वो
कौन था जो एक खगोल विज्ञानी
होने
के साथ-साथ
बेहतरीन गणितज्ञ, जबर्दस्त
भौतिक वैज्ञानिक और अपने वक्त
के
ज़हीन
फिलोस्फर थे...? ये
वही गैलिलियो थे जिन्होंने
चर्च ती नाराज़गी मोल लेकर
भी
आधुनिक
विज्ञान की नींव रखी...
(पिता
और बेटा दोनों ही कमरे से निकलकर
बाहर आते हैं...)
पिता-
बेटा
ये गैलिलियो ही थे जिन्होंने
उस वक्त की धार्मिक मान्यताओं
को हिलाकर रख
दिया
था...यूरोप
में गैलिलियो ने ही अपने
प्रयोगों के बाद ये कहा कि
“ग्रह
सूर्य की
परिक्रमा
करते हैं न कि पृथ्वी की”
बेटा-
हां
पापा...
पिता-
सूरज
की परिक्रमा वाली थ्योरी को
आज कहना जितना आसान है...उतना
आसान
उस
वक्त नहीं रहा होगा...इस
खोज के लिए गैलिलियो को इनाम
मिलने की बजाय क़ैद
दी
गई...
वी
ओ-2,
दरअसल
गैलिलियो अपने टेलिस्कोप के
आविष्कार से इस नतीजे पर पहुंचे
कि धरती ब्रह्मांड का केंद्र
नहीं है, बल्कि
वो तो सूरज है...तब
उन्होंने कहा कि “ग्रह
सूर्य की परिक्रमा करते हैं
न कि धरती की”
इस तरह
गैलिलियो ने कॉपरनिकस के
सिद्धांत का ही समर्थन
किया...सालों
पहले ही गैलिलियो ने गणित,
सैद्धांतिक
भौतिकी और प्रायोगिक भौतिकी
के आपसी संबंधों को समझ लिया
था...
पिता-
बेटा...अल्बर्ट
आइंस्टाइन को जानते हो ना ?
बेटा-
हां
पापा, अपने
थॉट एक्पेरिमेंट्स के लिए
जाने गए... लो
तो दीनियस थे...
पिता-
बिल्कुल
ठीक, उन्हीं
आइंस्टाइन ने गैलिलियो को
आधुनिक विज्ञान का पिता कहा
था...क्योंकि
मॉडर्न एरा में सबसे पहले
गैलिलियो ने ही मैथ्स,
प्रिंसिपल
ऑफ़ फिज़िक्स
और
प्रैक्टिकल फिज़िक्स के आपसी
रिलेशंस को जोड़ने का काम किया
था...
वी
ओ-3,
अपने
थॉट एक्पेरिमेंट्स के लिए
मशहूर अल्बर्ट आइंस्टाइन ने
जब गैलिलियो को
आधुनिक
विज्ञान के पिता की पदवी दे
डाली, तब
दुनिया का एकाएक ध्यान गैलिलियो
के
काम पर बड़ी शिद्दत से गया...
1609 में
गैलिलियो को दूरबीन यानी
टेलिस्कोप के बारे में पता
चला...जिसका
हॉलैंड में आविष्कार हो चुका
था...ये
गैलिलियो की बुद्धि का ही कमाल
था कि उन्होंने सिर्फ सुनकर
ही उससे कहीं अधिक बेहतरीन
और शक्तिशाली टेलिस्कोप खुद
ही बना डाली...बस
फिर क्या था...उन्होंने
खुलेआम कॉपरनिकस के सिद्धांतो
को समर्थन देना शुरु कर
दिया...गैलिलियो
का इस तरह खुलेआम कॉपरनिकस
का यूं समर्थन करना उस वक्त
की धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ
गया...इसे
गैलिलियो की ज़िंदगी की सबसे
बड़ी भूल माना गया...
पिता-
पता
है बेटा इस बात के लिए चर्च ने
1633 में
गैलिलियो को ये आदेश दिया कि
वो
इस बात को सार्वजनिक रुप से
कहें कि ये उनकी ज़िंदगी की
एक बड़ी भूल है...इसके
बाद
उन्हें क़ैद में भेज दिया
गया...इस
बात को चार सौ साल बीत चुके
हैं...
1992 तक
आते-आते
पॉप जॉन पॉल द्वितीय ने ये
घोषणा की...कि
गैलिलियो के खिलाफ
किया
गया फैसला एक भूल थी...अब
तो यहां तक कहा जा रहा है कि
गैलिलियो समेत
तमाम
वैज्ञानिकों ने आस्थावान
लोगों को और बेहतर समझबूझ में
मदद करके ईश्वर के
कार्य
को संपन्न किया है...
बेटा-
पापा
क्या इससे पहले भी किसी वैज्ञानिक
को उसकी खोज के लिए सजा दी गई
थी...
पिता-
बेटा
ये तो होगा ही... जब
आप किसी विश्वास को अपने तर्कों
के दम पर
हिलाओगे...तो
उसका विरोध तो होगा ही...और
सच्चाई की ही जीत होती है...तभी
तो
सत्यमेव
जयते कहा जाता है...
वी
ओ-4,
गैलिलियो
और विज्ञान के तमाम पहलुओं
को जानने और समझने के बाद आपको
अब गैलिलियो के जन्म और बाक़ी
पहलुओं की कहानी भी बताते चलते
हैं...
टेढ़ी
मीनार के लिए प्रसिद्ध इटली
का पीसा शहर...इसी
शहर में
15 फरवरी
1564 में
गैलिलियो गैलिली का जन्म
हुआ...ये
भी सच है कि गैलिलियो का एक
खगोल विज्ञानी के तौर पर याद
किया जाता है...जिसने
दूरबीन में सुधार करके उसे
और शक्तिशाली बना दिया...और
उससे अपने प्रयोगों से ऐसे
चौंकाने वाले तथ्य पेश किए...जिसने
खगोल विज्ञान को नई दिशा दी
और आधुनिक विज्ञान की नींव
रखी...लेकिन
गैलिलियो की शख़सियत के दूसरे
भी पहलु हैं- मसलन
वो एक कुशल गणितज्ञ,
भौतिकविद
और दार्शनिक भी थे....
माना
जाता है कि गैलिलियो ने गणित
की बारीकियों को अपने पिता
विंसैंजी गैलिली से विरासत
में हासिल किया था...
पिता-
पता
है बेटा, गैलिलियो
के पिता एक संगीतकार भी थे...वे
‘ल्यूट’
नाम का वाद्ययंत्र
बजाया
करते थे...धीरे-धीरे
वो यंत्र गिटार और बैंजों में
तब्दील होता गया...
वी
ओ-5,
विंसैंजी
गैलिली एक संगीत विशेषज्ञ भी
थे...और
अपने जमाने का ल्यूट बजाया
करते थे...इन्होंने
पहली बार ऐसे प्रयोग किए...जिनसे
अरैखिक संबंध का प्रतिपादन
हुआ...
अब
तक यही माना जाता था कि किसी
वाद्य यंत्र की तनी हुई तार
के तनाव और उससे निकलने वाली
आवृत्ति में एक संबंध होता
है...आवृत्ति
तनाव के वर्ग के समानुपाती
होती है...इस
तरह गणित---संगीत
की दुनिया में अपनी मौज़ूदगी
दर्ज किए हुए था...इसी
से प्रेरित होकर गैलिलियो ने
अपने पिता ते काम को आगे
बढ़ाया...और
बाद में पाया कि क़ुदरत के
नियम गणित के समीकरण होते
हैं...गैलिलियो
ने लिखा भी है...’भागवान
की भाषा गणित है’
पिता-
बेटा
ये बड़ी ही दिलचश्प बात है कि
गैलिलियो एक धार्मिक किस्म
के आदमी
थे...लेकिन
फिर कैसे वो अपने ही प्रयोगों
के परिणामों को नकार सकते
थे...जो
उनकी
अपनी
ही मान्यताओं के खिलाफ जाते
हों...ये
उनकी ईमानदारी का ही नतीजा
था कि वो
ऐसा
कर पाए....
बेटा-
क्या
कहा पापा...वो
धार्मिक किस्म के आदमी थे...फिर
तो वाकई में वो ईमानदार
थे...वरना
कोई भी इस तरह हिम्मत न कर
पाता...मुझे
तो लगता है कि आज भी ऐसे
लोगों
की बेहद कमी है...जो
अपने प्रयोगों के निष्कर्ष
को इतनी बेबाकी के साथ सामने
रखते
हों....
वी
ओ-6,
सच्चाई
तो यही है कि गैलिलियो की चर्च
के प्रति सच्ची निष्ठा थी...बावजूद
इसके उन्होंने किसी भी पुरानी
अवधारणा को यूं ही नहीं मान
लिया...बाक़यदा
उसे पहले अपने विवेक और ज्ञान
के तराजू पर तौल कर देखा...जब
उस पर पुरानी अवधारणाएं फिट
नहीं बैठीं तब जाकर उन्होंने
नई अवधारणाओं का प्रतिपादन
किया...गैलिलियो
की इसी सोच ने आदमी की चिंतन
प्रक्रिया में क्रांतिकारी
मोड ला दिया...ये
भी सच है अगर गैलिलियो के प्रयोग
ऐसा इशारा करते तो वो खुद ही
अपने विचारों अमल में नहीं
लाते...
अपने
प्रयोगों को करने के लिए
गैलिलियो ने लंबाई और समय को
के मानक तैयार किए...ताकि
वही प्रयोग कहीं और जब किसी
दूसरी प्रयोगशाला में किए
जाएं तो नतीजे एक ही आएं...ताकि
गैलिलियो के प्रयोंगो की जांच
कोई भी कर सके...
पिता-
पता
है बेटा...गैलिलियो
ने प्रकाश की गति को नापने की
भी कोशिश की थी...
बेटा-
वो
कैसे पापा ?
पिता-
गैलिलियो
ने प्रकाश की गति को नापने के
लिए अपने एक साथी को तैयार
किया...दोनों
ने एक ऐसा लालटेन लिया...
जिस पर ढक्कन
लगा हुआ था...और
दोनों
अलग-अलग
पहाड़ों पर चढ़ गए...गैलिलियो
ने अपने साथी को हिदायत दी कि
जैसे ही
उसे
गैलिलियों की लालटेन की रोशनी
दिखाई दे वो तुरंत अपनी लालाटेन
का ढक्कन
खोल
दे...क्योंकि
गैलिलियो को अपनी लालटेन और
अपनी साथी के लालटेन के प्रकाश
बीच
के अंतर को मापना था...पहाड़ों
के बीच की दूरी उन्हें पहले
से ही पता थी...इस
तरह
गैलिलियो ने अपनी ही तरह से
प्रकाश की गति को नापने का एक
नयाब तरीका
ढूंढा...
बेटा-
वाह
पापा... क्या
बात है...जितना
कुछ भी अपने पास हो उसी से जानने
की
कोशिश
करते रहना चाहिए...किसी
चीज को खोजने के लिए कभी चीजों
की कमी का
बहाना
नहीं बनाना चाहिए...
पिता-
क्या
बात है बेटा...बिल्कुल
ठीक कहा...मन
में अगर कुछ कर गुज़रने की
इच्छा हो
तो
कोई भी कमी कभी आड़े नहीं
आती...फिर
वो चाहे छोटी कमी हो या फिर
बड़ी...
वी
ओ-7,
इस
ब्रह्मांड में जितना हिस्सा
अब तक देखा जा चुका है उसमें
मिल्ली वे जैसी खरबों आकाशगंगाएं
लगातार एक दूसरे से दूर भाग
रही हैं...ब्रह्मांड
की ये समझ सौ साल पहले पहले के
मुक़ाबले बहुत अलग है...लेकिन
चार सौ साल पहले की समझ के
मुक़ाबले तो इसका कोई सीधा
रिश्ता ही नहीं बनता...आकाश
का अध्ययन करने वाले विज्ञान
एस्ट्रॉनोमी को पुराने और नए
युग में बांटना हो तो ये हमें
चार सौ साल पहले ले जाता है...जिस
रेखा को खींचने का काम गैलिलियो
ने किया था...
पादुआ
युनिवर्सिटी में गणित,
भौतिकी
और खगोलशास्त्र के शिक्षक
रहे गैलिलियो की चर्चा अक्सर
उनके 45 साल
की उम्र के बाद के कामों के
लिए होती है...खासकर
25 अगस्त
1609 को
टेलिस्कोप के सार्वजिनक
प्रदर्शन के बाद के वक्त के
लिए...हालांकि
इससे पहले भी गणित और भौतिकी
में,खासकर
तोप के गोलों के रास्ते के
बारे में बड़े काम किए थे...लेकिन
साफतौर पर गैलिलियो के लिए
ये एक ऐसा मोड़ था...
जिसके
बाद विज्ञान की दुनिया में
कई नई तरह की खोजों का जन्म
हुआ...
पिता-
पता
है उनका खराब वक्त भी आया जब
उन्हें परिवार पालने के लिए
अपनी टेलिस्कोप तक को रोम की
सीनेट को देना पड़ा...गैलिलियो
सीनेट के कुछ सदस्यों को समंदर
के किनारे लेकर गए और उन्हें
दिखाया कि किस तरह टेलिस्कोप
का इस्तेमाल करके रोम के तोपची
हमलावर ज़हाजों का पता वो पहले
ही लगा सकते हैं...सीनेट
उनकी इस खोज से काफी खुश
हुई...नतीजा
ये हुआ कि उनकी तनख्वाह बढ़ा
दी गई... पता
है इस बढ़ी हुई तनख्वाह का
उन्होंने बेजा इस्तेमाल नहीं
किया बल्कि उसका इस्तेमाल
अपनी टेलिस्कोप को सुधारने
में किया...अब
उनकी टेलिस्कोप की क्षमता 9
गुना
बढ़ चुकी थी...
वी
ओ-8,
इस
तरह गैलिलियो ने अपनी बेहतरीन
टेलिस्कोप का इस्तेमाल आकाश
दर्शन में किया...इस
तरह जनवरी 1610 से
न सिर्फ गैलिलियो के जीवन का
बल्कि खगोल का भी एक नया युग
शुरु हुआ...इस
दौरान लिखे गए उनकी डायरी के
पन्ने बेहद ही रोमांचक हैं...इसी
साल 7 जनवरी
को उन्हें बृहस्पति के इर्द
गिर्द चमकने वाले तीन नन्हें
तारे दिखाई दिए...9
जनवरी
को ये तीन से चार हो गए...11
जनवरी
को इनमें से एक ग़ायब हो
गया...लेकिन
तीन चार दिन बाद दौबारा दिखने
लगा...गैलिलियो
ने लिखा कि चार और तारे हैं जो
अपने छोटेपन की वजह से नंगी
आंगों से नजर नहीं आते हैं...ये
एक तय वक्त पर पीछे छिपते और
दिखते हैं...शायद
ये बृहस्पति का चक्कर लगा रहे
हैं...गैलिलियो
ने इसका नाम अपने एक शुभचिंतक
के नाम पर मेडिसियन स्टार नाम
दिया...इस
तरह खगोलशास्त्र में पहली
बार सैटेलाइट या उपग्रह जैसी
कोई चीज दर्ज़ हुई...
पिता-
गैलिलियो
कितने अहम है हमारी वैज्ञानिक
दुनिया के लिए...इसलिए
तो अलबर्ट आइंस्टाइन ने उन्हें
आधुनिक विज्ञान का पिता कहा...जब
एक जीनियस ने ये बात कही है तो
उसमें जरुर दम होगा...और
वो दम अब तुम्हारी समझ में आ
ही गया होगा...
टेलिस्कोप
के अलावा गैलिलियो ने कुछ और
भी अहम आविष्कार किए हैं...मसलन
उन्होंने उच्चकोटी का कम्पास
भी बनाया जो समुद्री यात्रियों
के लिए बेहद उपयोगी रहा...थर्मामीटर,
सूक्ष्मदर्शी,
पेंडुलम
घड़ी भी उनके अहम आविष्कारों
में आते हैं...
कुछ
आया समझ
में.......................................................................................
(पिता
और बेटा दोनों ही टीवी कैमरे
को देखकर दर्शकों को कहते हुए
आउट हो जाते हें)
शंभू रिर्टन ...शानदार...तरीका कहने का लिखने का
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