सापेक्षता का सिद्धांत (Relativity )

सापेक्षता का सिद्धांत (Relativity)

जीवन ! एक ऐसी शक्ति, जिसे हर तरफ महसूस किया जा सकता है। आकाश, पाताल और जमीन, हर जगह इसके अंश किसी-न-किसी रूप में मौजूद हैं। जब से धरती बसी है, इसके कण-कण में बसा जीवन एक लय में थिरक रहा है। और जीवन के इस लय को निर्धारित करती है - गति यानि Motion.

वो नियम जो पता नहीं कब से गति को निर्धारित करते चलते आ रहे हैं। हां, ये अलग बात है कि मनुष्य को इसकी जानकारी करीब 300 साल  पहले ही हुई जब दुनिया ने इन नियमों को एक नए नाम से पहचाना  - सर Issac Newton.


Issac Newton
Newton ने हमें ये बताया कि कोई भी वस्तु स्थिर या एक-समान गति की अवस्था में तब तक रह सकती है जब तक कि कोई बाहरी बल उस पर कार्य न करें। ये बल उसकी गति को एक खास दर से बढ़ा भी सकता है और घटा भी सकता है।  परंतु गति और उसके नियमों के साथ ये प्रश्न भी उठा कि गति का निर्धारण कैसे किया जाए ? जैसे मान लें दो रेलगाडि़यां एक ही दिशा में 50 km. प्रति घंटे की रफ्तार से जा रही हो तो उन गाडि़यों में बैठे यात्रियों के लिए दूसरी ट्रेन स्थिर नजर आएगी, जबकि प्लेटफार्म पर खड़ा व्यक्ति उन गाडि़यों को 50 km.प्रति घंटे की रफ्तार से जाता हुआ मानेगा। तो प्रश्न ये था कि ट्रेन की गति का मान किसके अनुमान पर निर्धारित किया जाए ? 


ट्रेन में बैठे व्यक्ति के अनुमान पर, या फिर प्लेटफार्म पर खड़े व्यक्ति के अनुमान पर ?

जवाब था कि दोनों अपनी-अपनी जगह सही हैं। वस्तु की गति का मान, अनुमान लगाने वाले व्यक्ति की स्थिति पर निर्भर करेगा, अर्थात् वो स्थिर अवस्था में अनुमान लगा रहा है या गतिशील होकर। संक्षेप में कहें तो निष्कर्ष था - गति निरपेक्ष (absolute)  नहीं बल्कि सापेक्ष (Relative)  है। पर गति को सापेक्ष मानने के बाद उससे एक और सवाल जुड़ गया। क्या भौतिकी के बाकी सारे नियम गति की तरह सापेक्ष होंगे ? उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति 40 km प्रति घंटे की रफ्तार से जाती हुई गाड़ी में भौतिकी या भौतिक नियमों से जुड़ा कोई भी प्रयोग कर रहा हो और दूसरा व्यक्ति प्लेटफार्म पर खड़े होकर वही प्रयोग कर रहा हो तो क्या दोनों के परिणाम अलग होंगे ? जवाब था नहीं।

17 वीं सदी में अपना स्वरूप प्राप्त कर रही भौतिकी यानि Physics ने सापेक्षता का पहला सिद्धांत दिया, और वो ये कि स्थिर या एक-समान गति की अवस्था में भौतिकी के नियम (Physical laws) नहीं बदलेंगे। 


गैलिलियो और न्यूटन के जमाने से ज्ञात Classical Theory of Relativity  के नाम से मशहूर सापेक्षता का ये सिद्धांत उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक तक बिना किसी चुनौती के कायम रहा पर तभी तक, 
जब तक Maxwell  नामक वैज्ञानिक के सिद्धांतों पर किये प्रयोगों ने ये साबित नहीं कर दिया कि एक ऐसी गति भी है जिसका मान स्थिर है, और वो है - प्रकाश की गति 



Charged Particle  के Motion (विद्युतभारित कण की गति) का अध्ययन करते हुए उन्होने पाया कि इस Motion (गति) से जो  electric  और magnetic field बनती हैं, वो एक 
तरंग के रूप में उस charged particle से निकलती है। Maxwell  ने इसे electromagnetic waves  यानि विद्युत-चुंबकीय तरंग कहा और जब इन तरंगों की गति का गणितीय आंकलन शुरू किया तो पाया कि इसका ‘मान’ (value)  वही है जो ‘प्रकाश’ की गति का है।
परन्तु एक समस्या तब भी थी और वो थी माध्यम यानि medium  की। उस वक्त ध्वनि आदि बाकी तरंगों की तरह प्रकाश के गमन के लिए भी एक माध्यम की कल्पना की गई जिसे ईथर कहा गया। पर ईथर को सच मानने का मतलब था पृथ्वी के साथ उसकी गति से घूमते हुए ईथर की दिशा में प्रकाश की गति और उसकी विपरीत दिशा में प्रकाश की गति में फर्क आना चाहिए था, पर ऐसा नहीं था। माइकल्सन और मोरले नामक वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों द्वारा ये साबित किया कि दिशा में प्रकाश का मान दो  विपरीत दिशाओं में एक ही है, जिसका मतलब था ईथर नामक कोई माध्यम exist ही नहीं करता यानि  प्रकाश की गति का मान किसी माध्यम के सापेक्ष नहीं बल्कि निरपेक्ष या absolute  है और हर दिशा में एक समान है।

आगे इन waves पर किए गए प्रयोगों ने ये साबित किया कि विद्युत-चुंबकीय तरंग, तरंगों का एक परिवार है, जिसमें रेडियो और gama  तरंगों से लेकर प्रकाश की वो तरंगे भी शामिल हैं जो हमें दिखाई देती हैं। और इन सब तरंगों के ‘कंपन की दर’ (frequency) और ‘प्रति तरंग लंबाई’ (wavelength)  भले ही अलग हो, इन सबकि गति का मान एक ही होता है और स्थिर (constant)  भी रहता है।

उन्नीसवीं सदी का अंत और बीसवीं सदी का आरंभ वैज्ञानिक हलचलों का समय था। प्रकाश की गति के स्थिर मान यानि constant value  की धारणा ने एक वैज्ञानिक के अंदर ऐसी बौद्धिक हलचल मचाई कि उससे पैदा हुई उसकी सोच ने न्यूटन के गति के नियमों की सर्वमान्यता (universality) को जड़ से हिला दिया। इस वैज्ञानिक का नाम था Albert Einstein.


 Albert Einstein
आइंस्टाइन का ये मानना था कि प्रकाश की गति अगर Constant  है तो इसे स्थिर या गतिशील किसी भी परिप्रेक्ष्य में constant  होना चाहिए और इसे उन्होंने गणितीय रूप से साबित भी किया। आइंस्टाइन ने ये कहा कि चूँकि गति, स्थान और समय का अनुपात होती है, इसलिए गति के मान को स्थिर रखने के लिए स्थान और समय को भी परिप्रेक्ष्य  के हिसाब से बदलना होगा।

(J.V. Narlikar) Expert, भारत के सुप्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लिकर, जो इस विषय को बड़े ही सरल और रोचक ढंग से समझाते हैं।


जयंत विष्णु नार्लिकर
आइंस्टाइन ने Light केSpeed  के Constant होने को भौतिकी के मूल नियम का परिणाम माना जिसे हर परिप्रेक्ष्य में एक समान होना चाहिए। पर Speed एक समान होने के लिए स्थान और समय (space & time) को मापने का तरीका भी अलग होना चाहिए। इसी आधार पर Einstein  ने अपने Mathematical Calculations गणित के समीकरणों के आधार पर बताया कि गतिशील माध्यम में Space Contract होगा या छोटा होगा, पर समय का अनुमान ज्यादा होगा। जैसे मान लीजिए एक चलती ट्रेन में एक  meter rod  रखा हुआ है तो आइंस्टाइन के अनुसार उस मीटर रॉड की लंबाई ट्रेन के बाहर खड़े observer के लिए कम हो जाएगी और उसी ट्रेन में एक घड़ी रखी हो तो बाहर खड़े observer के लिए वो घड़ी slow चलेगी यानि उसके लिए समय ट्रेन में देर से बीतेगा। 

जबकि ट्रेन में बैठे व्यक्ति के लिए रॉड की लंबाई और घड़ी के समय में कोई परिवर्तन नहीं होगा। पर  अगर observer  चलती ट्रेन में हो और घड़ी तथा रॉड  बाहर हो तो वही परिवर्तन दिखाई देगा।
आइंस्टाइन ने अपने  mathmatical calculation के द्वारा ये बताया कि गतिशील माध्यम में space contract या संकुचित होगा पर समय का अनुमान ज्यादा होगा जैसे मान लीजिए एक चलती ट्रेन में एक मीटर रोड रखा हुआ है तो  Einstein  के अनुसार उस मीटर रॉड की लम्बाई ट्रेन के बाहर खड़े observer  के लिए कम हो जायेगी और उसी ट्रेन में एक घड़ी रखी हो तो बाहर खड़े observer  के लिए वही घड़ी slow चलेगी यानि उसके लिए समय ट्रेन में देर से बीतेगा जबकि ट्रेन में बैठे व्यक्ति के लिए रोड की लम्बाई और घड़ी के समय में कोई परिवर्तन नहीं होगा। पर अगर observer चलती ट्रेन में हो और घड़ी तथा रॉड बाहर हों तो वही परिवर्तन दिखाई देगा। पर Einstein  के गणितीय समीकरण के अनुसार ये space और time का variation  तभी अनुभव किया जा सकता है जब किसी  गतिशील माध्यम की गति प्रकाश की गति के करीब हो। जबकि हमारे आम जीवन में दुनिया की सबसे तेज चलने वाली रेलगाड़ी भी हमें ये अनुभव नहीं दिला सकती क्योंकि उसकी गति 3 लाख कि.मी. /सेकेंड वाली प्रकाश की गति की तुलना में रत्ती मात्र भी नहीं। यही कारण है कि स्थान और समय की सापेक्षता को हम आम जिंदगी में महसूस नहीं कर पाते।

आइंस्टाइन की ये अवधारणा  Special Theory of Relativity  के नाम से विख्यात है। 


पर सवाल ये उठता है कि जिस सिद्धांत को गणितीय रूप से आइंस्टाइन ने बखूबी साबित कर दिया, क्या उसका कोई प्रमाण भी है ?

आइंस्टाइन एक ऐसे वैज्ञानिक थे जिनकी अवधारणाएँ (concepts) कल्पना में जन्म लेती थी और गणितीय सूत्रों और समीकरणों द्वारा साबित होती थी जिन्हें बाद में वैज्ञानिक प्रायोगिक तौर पर भी सही पाते थे। और यही आइंस्टाइन की एक वैज्ञानिक के तौर पर महानता थी।

1905 के आस-पास, जब आइंस्टाइन ने अपना Special Theory of Relativity का paper  लिखा, उस वक्त वो एक Swiss patent  ऑफिस में एक क्लर्क की हैसियत से काम कर रहे थे। यही वो समय था जब अपनी Relativity  की Special Theory  को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने एक और क्रांतिकारी सिद्धांत प्रतिपादित किया जो एक छोटे से गणितीय सूत्र (Formula) के रूप में उनके नाम से हमेशा के लिए जुड़ गया, और वो फार्मूला था E = mc²,  जिसका मतलब था कि mass (वस्तुमान),  energy (ऊर्जा) में, और Energy, mass में बदल सकती है। 


आइंस्टाइन ने बताया कि mass भी relative है और किसी वस्तु की गति बढ़ने से उसका mass भी बढ़ेगा। 


Spaceऔर time absolute नहीं है सिर्फ इतना साबित करके  Einstein का वैज्ञानिक दिमाग संतुष्ट नहीं था। उन्हें एक सवाल बार-बार परेशान कर रहा था और वो ये कि 'space'और 'time' किसी accelerated frame में कैसे व्यवहार करेंगे ?
न्यूटन के अनुसार दो वस्तुओं के बीच की gravitational pull यानि Instantaneous  होती है और ये बात धरती और सूर्य के साथ भी लागू है। पर अगर हम ऐसी कल्पना करें कि सूर्य नष्ट हो गया है तो हमें इसका पता आठ मिनट बाद लगेगा क्योंकि सूर्य की रोशनी धरती तक पहुंचने में आठ मिनट लेती है। पर न्यूटन के अनुसार gravity का प्रभाव तात्कालिक होता है इसलिए सूर्य के गुरूत्वाकर्शण प्रभाव के नष्ट होने का पता तुरंत यानि प्रकाश के धरती पर पहुंचने से पहले ही लग जाना चाहिए जो कि special theory of Relativity के मूलभूत सिद्धांत से मेल नहीं खाती। इसके अनुसार कोई भी Physical Intaraction या परिणाम प्रकाश की गति से ज्यादा तेजी से move नहीं कर सकता। इसी विरोधाभास ने आइंस्टाइन को न्यूटन की गुरूत्वाकर्शण की अवधारणा पर पुनः सोचने के लिए मजबूर कर दिया। 

इसके लिए आइंस्टाइन ने चुना अपनी ही पृथ्वी के gravitational field को। धरती द्वारा पैदा  gravitational acceleration का अंदाजा लेते हुए गणित की कवायद एक बार फिर शुरू हुई, और इस बार नतीजा और भी चैंकानेवाला था।  


उन्होंने ये दावा किया कि gravity यानि गुरुत्वाकर्षण Space-time की geometry को प्रभावित करती है। यानि space और  time  की हमारी रेखागणितीय परिकल्पना बदल जाएगी, क्योंकि गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव से दो बिंदुओं के बीच की सीधी या न्यूनतम दूरी एक सरल रेखा ना होकर एक curved line होगी।


होता ये है कि प्रकाश की रेखाएं तो सीधी ही जाती हैं पर गुरूत्वार्षण की वजह से curved हो गये space से गुजरने के कारण ये मुड़ी हुई नजर आती हैं। पर सवाल ये था कि जो अवधारणा earth के gravitation field के लिए लागू है, क्या वो किसी भी accelerated frame of reference के लिए भी लागू है, यानि equivalent  है ? आइंस्टाइन का जवाब था - ‘हाँ’ उनके अनुसार अगर एक व्यक्ति धरती पर किसी एक कमरे में बैठा हो या फिर धरती के gravitational acc. से ही जाती हुई किसी अंतरिक्ष यान में बैठा हो तो उसके स्थान और समय के अनुभव में कोई अंतर नहीं होगा। आइंस्टाइन ने इसे equivalence principle का नाम दिया। 

इस अवधारणा कोEinstein's elevator  नामक मशहूर thought expt. के जरिए भी समझा जा सकता है। 
हम ऐसे elevator  की कल्पना करें जो space में धरती की तरफ freely  गिर रहा है, लगभग उसी तरह जैसे आपके बिल्डिंग का elevator cable  कट जाने से गिरेगा।  Free fall  की इस स्थिति में elevator में खड़ा कोई व्यक्ति किसी भी तरह से ये नहीं जान सकता कि उस पर या उसके द्वारा किए जा रहे किसी भी प्रयोग पर  gravity का कोई प्रभाव है। उसे अपने ऊपर गुरूत्वाकर्षण का प्रभाव पता ही नहीं चलेगा, यानि वो अपने को भार-हीन महसूस करेगा। 

इसलिए उसके आसपास में, जैसे कि elevator के अंदर, Relativity की Special Theory लागू होगी, पर बाहर के observer के लिए elevator  accelerated  होगा, और उसके लिए lift के अंदर की घटना गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव में नजर आएगी। 
इसलिए लिफ्ट की एक दीवार से निकली हुई एक प्रकाश की रेखा लिफ्ट के अंदर के व्यक्ति के लिए सीधी रेखा में लिफ्ट की दूसरी दीवार तक जायेगी। पर लिफ्ट के बाहर space में खड़े व्यक्ति को वही रेखा मुड़ी हुई दिखाई देगी।

Gravitation द्वारा प्रकाश के मुड़ने का दावा और उससे ये निष्कर्ष कि स्थान या space  में मोड़ है,Einstein की दूसरी क्रांतिकारी अवधारणा थी जिसने gravity  को देखने और परखने का नजरिया ही बदल दिया। 

आइंस्टाइन की इस अवधारणा ने न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण के नियमों को भी चुनौती दी।  क्योंकि आइंस्टाइन के मुताबिक सूर्य के चारों तरफ  घूमने वाले ग्रह curved space follow  करते हैं, ना कि सूर्य की गुरूत्वाकर्षण शक्ति की वजह से उसके चारों तरफ घूमते हैं। हालांकि उसकी कल्पना करना जरा मुश्किल है, पर इसे एक तरीके से अच्छी तरह समझा जा सकता है। 


एक rubber की sheet  लें जिस पर कुछ vertical और horizontal lines खींची हों। Sheet  को stretch कर दें। और उसके centre में एक बड़ी गेंद रख दें। 

हम देखेंगे की गेंद के पास जो लाइने हैं वो थोड़ी तिरछी दिखाई देंगी और sheet में एक slope  या  curve पैदा हो जाएगा। अब हम जब एक दूसरी गेंद इस सतह पर डालेंगे तो वो उस curve की वजह से बड़े ball के पास चली जाएगी। कमाल की बात ये थी कि आइंस्टाइन के Mathematical Calculations और काल्पनिक प्रयोग फिर सच साबित हुए। सन् 1919 में आइंस्टाइन उस वक्त रातों-रात काफी मशहूर हो गए जब British खगोल शास्त्रियों  के एक दल ने पूर्ण सूर्य ग्रहण की तस्वीरें लेते समय उस सितारे की  virtual image  
नजर आई जिसकी वास्तविक position  छिपी हुई थी और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उस सितारे से निकले प्रकाश की रेखा सूर्य के गुरुत्वाकर्षण की वजह से मुड़ी और उसकी  image उसके वास्तविक position  से अलग हटकर नजर आई। 


Einstein द्वारा gravity यानि गुरूत्वाकर्षण की नई परिकल्पना general theory of Relativity (व्यापक सापेक्षतावाद) के नाम से विख्यात हुई। समय के साथ-साथ gravity  द्वारा space के  curve होने के और भी सुबूत मिले। निरीक्षणों द्वारा बुद्ध ग्रह की कक्षा में सूर्य के सबसे समीप वाले बिन्दु यानि Perihelion में एक shift  अनुभव किया गया। हालांकि एक शताब्दी में सिर्फ 43 arch sec. का ये shift बहुत ही मामूली था। पर गुरूत्वाकर्शण द्वारा space में curve पैदा होने के सुबूत के लिहाज से काफी था। 

आइंस्टाइन के इस नये नजरिये ने हमें अंतरिक्ष और उसके रहस्यों को ढूँढने के लिए एक पुख्ता हथियार  दे दिया। आज Black holes जैसी अवधारणाएँ इसके माध्यम से explain की जा रही हैं जहां gravitational pull  इतना ज्यादा है कि light 360º  तक मुड़ जाती है या यूँ कहें कि वो निकल ही नही पाती। 

पर अपनी इतनी सारी खूबियों के बावजूद Einstein  की General theory of Relativity सभी सवालों का जवाब नहीं दे पायी। क्या ब्रह्मांड में इतना matter है जिसकी gravity space को एक sphere की तरह बांध कर रख सके ? आइंस्टाइन ने कहा, हां।  उन्होंने universe (ब्रह्मांड) को closed यानि सीमित माना था। पर आइंस्टाइन की ये धारणा गलत निकली।  ऐसे प्रमाण वैज्ञानिकों के हाथ लगे जिनसे ये साबित होता था कि universe expand कर रहा है यानि फैल रहा है। पर शायद यही विज्ञान है, सिद्धांत और प्रयोग के बीच से ही इसकी यात्रा चलती है - सवालों को जवाब और जवाबों को नए सवाल देती हुई।







Comments

  1. शंभु जी, बहुत ही रोचक ढंग से आपने यह बात समझाई। बधाई।

    ............
    ब्‍लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!

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  2. vigyan prasaar... sahi kaha na...!
    bahut badhiya kaam kiya hai aapne ise likhkar...
    dhanyawaad....

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  3. Gravitational..lencing..ki.bajah..kuchh..our..hi..hoti..hai
    Space
    Main..bhar..ki..disha..ya...bhar..hi..nahin..hota..hai
    Gurutvaran..bal..hota..hai
    Par..gurutvakarshan..bal..nahin..hota.hai...

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