खूनी भंडारा...अमृत की टपकती बूंदे
(मैंने आपसे वादा किया था कि आपको अब्दुल रहीम खानखाना की एक अद्भुत रचना यानी एक ऐसी इंजीनियरिंग से रुबरु कराउंगा...जो आज के इंजीनियरों को गज़ब की प्रेरणा दे सकता है। और कुछ इसी तरह का विकास हमें चाहिए जो केवल हमारे लिए ही न हो। बल्कि उसका फायदा आने वाली पीढ़ियों को भी भरपूर मिलता रहे। उसी कड़ी में पेश है )
(मुग़लकालीन टेक्नोलोजी.....)
खूनी भंडारा
जो बुझा रहा है पीढ़ियों की प्यास...लगातार...बिना रुके...बिना थके...
तक़रीबन 100 फीट ज़मीन के नीचे दुनिया की एकमात्र जिंदा ऐसी सुरंग है जो अमृत जैसा पानी देती है। जो नापती है 4 किलोमीटर लंबा सफर। हैरान होने के लिए इतना ही काफी नहीं है। पिछले 400 सालों से इसने कई पीढ़ियों की प्यास बुझाई है...आज भी ये सुरंग लाखों लोगों की प्यास बुझा रही है।
यही है खूनी भंडारा का बाहरी हिस्सा |
कुछ इस तरह का नजारा रहा होगा शुरुआत में |
एक जाने माने इंटरनेशल चैनल के लिए हमें इस पूरे सिस्टम पर डॉक्युमेंटरी बनानी थी...बात सन् 2002 की है...हमने अपनी बेसिक रिसर्च पूरी की और अपने पूरे तामझाम के साथ पहुंच गए खूनी भंडारा कवर करने।
अंदर कुछ इस तरह का नज़ारा दिखता है |
मेरे साथ मेरे साथी डीओपी यानी डायेरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी खुर्शीद खान भी थे...हम सभी उन्हें प्यार से खुर्शीद भाई भी बुलाते हैं। खुर्शीद भाई अपने फन के माहीर इंसान हैं। चूंकि जिस सिस्टम का हमें पिक्चराइज़ेशन करना था उसका नाम बड़ा ही अजीबोगरीब था...लिहाजा मेरे और खुर्शीद भाई के मन में कई तरह की अशंकाओं ने जन्म लेना शुरु कर दिया। खूनी भंडारे जैसा नाम और ज़मीन के नीचे उतरना...इस तरह का कंबिनिशेन किसी के मन में भी डर पैदा कर सकता है। इंसान होने के नाते हमारे मन में भी उसी डर ने कब्जा जमाने की कोशिश की...लेकिन हमारी सभी तरह की आशंकाएं काफूर हो गईं जब हम खूनी भंडारे के नीचे उतरे। नीचे का नजारा देखकर तो मानों हमारे मन को लगा कि हम स्वर्ग में उतर आएं हों।
कुछ इस तरह सुरंग आपस में कुओं को जोड़ती है |
इस तरह का रिस्क उठाना ही पड़ता है। हमने जरुरी एहतियात के साथ 100 फीट नीचे शूटिंग शुरु कर दी। हम धरती के एक्युफर में शूटिंग कर रहे थे...जो कि अपने आप में हैरान करने वाला था...क्योंकि अभी तक ज्योग्राफी या जियोलॉजी में केवल एक्युफर के बारे में ही पढ़ा था कि धरती के एक्युफर में जाकर पानी जमा हो जाता है। जहां से कुओं और पंपों के जरिए पानी को ऊपर लाया जाता है। लेकिन हम खुद उसी एक्युफर में फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। ये कम से कम हमारे लिए बेहद हैरानी भरा था।
दक्षिणी भारत पर राज करने के इरादे से मुग़लों ने इस इलाके का खासतौर पर विकास किया था। तक़रीबन 2 लाख फौज़ और 35 हज़ार आम जनता को पानी मुहैया कराने के लिए मुग़ल सूबेदार अब्दुल रहीम खानखाना ने इसका निर्माण कराया था। इसका ''खूनी भंडारा'' नाम पड़ने के पीछे कई रोचक और मज़ेदार कहानियां भी जुड़ी हुई हैं। खूनी भंडारा में दो शब्द मौजूद हैं...एक है आखून और दूसरा है भंडार...आखून का मतलब होता है कभी न खत्म न होने वाला, ये एक अरबी शब्द है। यानी कभी न खत्म होने वाला भंडार, जो कि बिगड़ते-बिगड़ते खूनी भंडारा हो गया।
1615 ईस्वी में बनाए गए इस खूनी भंडारे में कुल 103 कुएं हैं। गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का इस्तेमाल कर इसका निर्माण कराया गया था। इसके तीसरे कुएं से उतरने के लिए एक छोटी सी लिफ्ट लगाई गई है। जैसा मैने पहले ही कहा है कि नीचे उतरने पर इसका नज़ारा कमाल का है। चांदी सी चमकती चूना पत्थर की दीवारें और उनपर चारों तरफ से टपकती बूंदें। इस खूनी भंडारे में आती पानी की बूंदे, बूंद-बूद से भरता सागर वाली कहावत सच करती हुई दिखती हैं। इसके नीचे उतरना किसी के लिए भी अद्भुत तजुर्बा हो
बाहर का एक कुआं |
आज भी जनता इन कुओं से पानी ले रही है |
ऊपर से देखने पर कुएं का दृश्य |
खूनी भंडारे की टेक्नोलोजी
ये कम ही लोगों को पता होगा कि खूनी भंडारा क्या है ? और इसकी इसकी तकनीक कैसी है ? बनावट के नज़रिए से देखें तो ये किसी धरोहर से कम नहीं है, जिसे मुग़लों की बेहतरीन कारीगरी का नमूना माना जा सकता है। ये एक ऐसा ऐतिहासिक सिस्टम है जो आज न केवल जिंदा है, बल्कि लाखों लोगों को ज़िदा रखे हुए है। खूनी भंडारा के जरिए मुग़ल सूबेदार अब्दुल रहीम खानखाना ने एक सपने को हक़ीक़त का जामा पहनाया। मक़सद था बुरहानपुर को मुगल फौज़ का बेस बनाना। क्योंकि यहीं से मुग़लों को राज़ करना था दक्षिण भारत पर। ऐसे में जरुरत थी ऐसी तकनीक की, जो 2 लाख फौज़ और 35 हज़ार आम लोगों को जीने की सबसे अहम चीज़ मुहैया करा सके। और वो था पानी। उस वक्त यहां पानी के लिए दमदार सिस्टम तैयार करना किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन सपना सच हुआ और इसे इंजीनियरिंग कौशल के बलबूते हक़ीक़त में बदला गया। ऐसे ऐतिहासिक प्रोजेक्ट के लिए बहुत बड़ा विज़न चाहिए होता है। ठीक इसी सोच पर चलकर अब्दुल रहीम खानखाना ने ऐसा सिस्टम तैयार कर डाला जो खूनी भंडारा के नाम से मशहूर हुआ। वही खूनी भंडारा जो विज्ञान और इंजीनियरिंग की नज़र से एक हज़ार साल तक पानी की सभी जरुरतों को पूरा करने की ताक़त रखता है।
सबसे पहले एक फ़ारसी भूवैज्ञानिक तबकुल-अर्ज ने 1615 ईस्वी में इस इलाके का व्यापक दौरा किया। उन्होंने यहां बारिश के पानी का बहाव, पहाड़ों की बनावट और उसमें मौजूद खनिज पदार्थों को बारीकी से परखा। तब जाकर इस जगह का चुनाव किया।
खूनी भंडारे में नीचे ज़मीन पर यूं ही बहता दिखता है पानी |
सुरंग में इस तरह से झरता रहता है पानी |
बहता पानी, मन को खुशी से भर देता है |
मुग़ल शासकों ने बुरहानपुर को भले ही ताजमहल न दिया हो लेकिन खूनी भंडारे के रुप में एक ऐसी अनूठी सौगात जरुर दी है जो देश में भूमिगत जल प्रबंधन का बेहतरीन नमूना है। ‘रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून’ का संदेश देने वाले अब्दुल रहीम खानखाना ने इस कहावत को हक़ीक़त का जामा भी पहनाया। दरअसल दक्षिण भारत पर राज़ करने के इरादे से मुग़लों को बुरहानपुर सबसे मुफ़ीद जगह लगी। इसी सामरिक अहमियत की वजह से मुग़लों ने बुरहानपुर को ख़ासतौर पर विकसित किया। कहा जाता है कि इस जगह बहने वाली ताप्ती नदी में अगर दुश्मन ज़हर घोल देता तो मुग़लों की विशाल सेना बेमौत मारी जाती। इसलिए ज़मीन के नीचे पानी को बहाने का फैसला लिया गया। पानी के साथ-साथ इसके पीछे एक और रणनीति काम कर रही थी, वो थी संकट के समय दुश्मन से बचने के लिए इस खूनी भंडारे को भागने के लिए इस्तेमाल किया जा सके। इस सुरंग का इस्तेमाल मुग़ल सुरक्षित मार्ग के तौर पर किया भी करते थे।
जगह-जगह यूं ही पानी निकलता रहता है |
कहीं से भी पानी टपकता जाता है
(इस पोस्ट पर आप सभी से क्रिटिकल कमेंट की अपेक्षा है)
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पूरी दुनिया में भूमिगत जल प्रबंधन या अंडरग्राउंड वाटर मैनेजमेंट की इतनी पुरानी व्यवस्था का अनोखा प्रतीक है ये खूनी भंडारा। इसे पर्यटन के आकर्षण का केंद्र भी बनाया जा सकता है और प्रेरणा का स्रोत भी। क्योंकि पानी के आने वाले संकट से निपटने के लिए अब्दुल रहीम खानखाना की ये अद्भुत संरचना हमेशा एक मिसाल रहेगी।
Aaj ke engineers ko kuch aisa hi tarika viksit karna hoga jo ki paryawaran ke anurup bhi ho ( envt. frndly ) aur aam logon ke liye faidemand bhi.Deshbhar mein pani ki samasya se jujhne ke liye ye lekh bahut hi prernadayak hai. A very informative and nice article.
ReplyDeleteशम्भू के संवाद में शम्भूजी ने विज्ञान की बेहतरीन,अद्भुत और महीन दुनिया से हम सभी को रुबरु कराने का जो काबिलेतारीफ काम शुरु किया है मैं उसकी तहेदिल से सराहना करता हूं..जीवन को जन्म देने और पालने का काम करता है अदृश्य सुप्रीम फोर्स जिसे ईश्वर, अल्लाह और भगवान कहते हैं..और जिंदगी को सलीके से जीने लायक बनाने में जो शै काम करती है वो है विज्ञान..विज्ञान की बारिकियां जानने की उत्सुकता हमेशा बनी रहती है...सृष्टि की शुरुआत से लेकर अनंत काल तक ये उत्सुकता बनी रहेगी...और विज्ञान की ये बारिकियां आम आदमी की समझ के लिए काफी दुरुह होती हैं इसलिए उसे सिम्पलीफाई करने और रोचक ढंग से हमारे सामने लाने का जो काम शम्भू जी ने शुरु किया है उसकी जितनी तारीफ की जाए वो कम है...खूनी भंडारा लेख में वॉटर मैनेजमेंट करने के बारे में जो तथ्य सामने आए हैं वो बहुत ही रोचक, प्रेरणास्पद हैं ऐसे बहुत सारे आंखे खोल देने वाले लेखों की शम्भू जी से अपेक्षा है...शम्भू जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं और साधुवाद....अनिल दीक्षित
ReplyDeleteaapne behtareen jaankari di hai.
ReplyDeletepadhna itna rochak laga ki ek-ek shabd gaur se padha
aabhaar
'सी.एम.ऑडियो क्विज़'
हर रविवार प्रातः 10 बजे
एक उम्दा जानकारी दी आपने , इसके लिए आभार । इस technology कों आज भी भूमिगत जल संरक्षण के लिए इस्तेमाल में लाना चाहिए।
ReplyDeleteकमाल की जानकारी है शंभू जी, क्या ये वही अब्दुल रहीम खानखाना हैं जो अकबर के दरबार में कविताएं लिखते थे? क्या इस तकनीक का उपयोग कर अभी भी किसी शहर या गांव की पेयजल की व्यवस्था दुरुस्त की जा सकती है? अगर हां, तो यह तकनीक महंगी पड़ेगी या सस्ती?
ReplyDeletedhanyawad shambhu ji adbhut jankari dene le liye
ReplyDeletepar jis tarah hamare desh ke kai itihaskaar (p.k.oak)is baat ka dava karte aur sabut dete aayen hain ki tajmahal pehle tejomahalya tha jise shahjahan ne nai banwaya tha balki wo to pehle bahgwan shiv ka mandir tha. thik usi tarah ye khuni bhandara bhi hamare hi desh ki den ho......
bijendra
gyan vardhak jaankaari ke liye dhanyvaad
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