शेखर का का संवाद- दोस्ती की सिल्वर जुबली
अबकी बार...
शेखर का का संवाद
(अबकी बार का ये लेख हमारे शेखर भाई ने लिखा है, शेखर भाई हमारे ग्रुप में सबसे वरिष्ठ हैं, इसलिए उनका अनुभव भी हम सभी से ज्यादा है...लीजिए दोस्ती के 25वें साल में एक और अहम कड़ी )
(अबकी बार का ये लेख हमारे शेखर भाई ने लिखा है, शेखर भाई हमारे ग्रुप में सबसे वरिष्ठ हैं, इसलिए उनका अनुभव भी हम सभी से ज्यादा है...लीजिए दोस्ती के 25वें साल में एक और अहम कड़ी )
मैं और पीछे है गिरि |
25 साल का समय...कहने को केवल चार शब्द हैं, लेकिन अपने आपमें पूरा
इतिहास समेटे हुए है, यदि कोई राजा या राजनीति का बख़ान होता तो इसे शब्दों में
समेटना आसान होता, किंतु दोस्ती के सालों को लिखना उतना आसान भी नहीं है, बीते
सालों में सब कुछ बदल गया, जिन घरों में लैंडलाइन फोन नहीं था, वहां सभी के
पास अपना मोबाइल है...
नाम का जिक्र न करते
हुए बताता हूं कि हमारा एक दोस्त स्कूल की फीस लेकर घर से चला, जो मात्र 50
आंखों में है चमक |
पैसे थी वो अठ्न्नी भी रास्ते में कहीं गिर गई, इसके बाद उस दोस्त का रो-रोकर बुरा हाल
हो गया, किसी तरह वो 50 पैसे मिले, तो उसका रोना बंद हुआ, आज वो मित्र हज़ारों
रुपये एक मिनट में ख़र्च करने का ताक़त रखता है, किसी के पास बाइक थी तो पेट्रोल
के पैसे नहीं होते थे, दोस्तों से लेता था, आज घर में दो-दो लक्जरी कारें हैं,
किसी के पास अपना घर नहीं था तो आज उसके पास कई-कई प्रॉपर्टियां हैं...
जया, राजेश और शंभु |
कई मित्र गांव जैसे
माहौल में रहते थे, कुछ-यानी कि मैं पुरानी दिल्ली रहता था, आज मल्टी स्टोरी
बिल्डिंग में परिवार के साथ रहता हूं, बहुत कुछ बदला, जीवन शैली बदली, जीवन पथ
बदला, किंतु अगर जो कुछ नहीं बदला मित्रता का भाव नहीं बदला, जो पहले दिन था वो आज
भी है, और बिना किसी दिखावे के...
JMI और NSS दो ऐसे नाम है
जिसने हम दोस्तों मिलवाया, कोई कॉलेज में मिला, तो कोई NSS में मिला, क्या दौर था वो, सब एक साथ कैंप अटैंड
करते और मित्रता के अटूट बंधन में बंधते जाते...
और मित्रों का मुझे
नहीं मालूम, लेकिन आज भी मेरे और राजेश के NSS कैंप के दोस्त,
दिल्ली से बाहर भी हैं और रैग्युलर टच में हैं...
ये है जागरुकता अभियान का हिस्सा |
राजेश कुमार, सबके लिए राजेश भाई, सर... वगैरह-वगैरह
परन्तु मेरे लिए
सिर्फ राजेश, जब लिखना शुरू किया है तो सबसे पहले राजेश से मेरी दोस्ती कैसे हुई-
आज उसका जिक्र करता हूं
हमारा NSS का एनआईसी कैंप अहमदाबाद के पास तलौद गांव में
लगा, तब तक मैं और राजेश केवल थोड़ा बहुत एक दूसरे को जानते थे, उस कैंप में एक
दिन राजेश खाना बांट रहा था
तब पत्राचार का समय था, राजेश के पास किसी फ्रेंड का लेटर आता, वो मुझे पहली फुरसत में दिखाता और मेरे पास किसी का लेटर आता तो सबसे पहले राजेश को दिखाता... इस तरह वक्त के साथ-साथ मेरी और राजेश की दोस्ती गहरी होती चली गई...
जयपुर ट्रिप में तैयार हुई योजना |
योजना भी, मस्ती भी |
जब किसी का जिक्र है
आता तो स्वाभाविक है उसका चरित्र हमारे जहन में आता है- राजेश केवल एक नाम नहीं,
एक मित्र नहीं, बल्कि यूं कहें कि राजेश अपने आपमें में एक पूरी संस्था है, मील का
पत्थर है...
दुबले-पतले शरीर में
इतना आत्मविश्वास, इतना सेवाभाव- न जाने भगवान ने कैसे भरा है, काम के प्रति लगाव
और वो भी मुस्कुराहट के साथ, गज़ब है...
एक चीज जो मुझे समझ
में नहीं आ रही, उसके चरित्र के दूसरे पहलू का बखान कैसे करूं, यानी जो उसका
रसियापन है, उसके बारे में बेबाकी से कैसे बताऊं... सोचता हूं उस राज़ को राज़ ही
रहने दूं... जितना आप सबको पता है उसी का मज़ा लो...
हम सभी मित्र- मैं, राजेश,
शंभु, गिरि, राम, केके, हमारे कपिल जी (ना मालूम कब दोस्ती हुई) छोटा (दोस्त का
भाई)...
शंभु का संवाद |
शंभु ने अपने संवाद
में जिस कैमिकल का जिक्र किया है- मेरे शब्दों में उसका नाम विश्वास है, हमने कभी
विश्वास की नींव को हिलने नहीं दिया, कभी पीठ पीछे किसी की बुराई नहीं की,
एक-दूसरे की बात को बाहर नहीं निकाला...
एक बार का वाकया
है... शायद 1995 का होगा... किसी बात को लेकर राजेश, शंभु और गिरि के बीच कुछ
गलतफहमी उत्पन्न हो गई, तब मुझे बड़े भाई की भूमिका में आना पड़ा और रात को ढाई
बजे तक ओखला हेड पर बैठे हुए सभी को समझाया, उसके बाद तो शंभुनाथ जो रोया है, वो
कोई नहीं भूला सकता, वैसे गिरि भी रोया था... कितना प्यार था सभी में, जो ताउम्र
बना रहेगा... आमीन
हम सभी दोस्त
अलग-अलग व्यवसाय में, नौकरी में हैं, हमारी राजनीतिक विचारधाराएं भी अलग-अलग हैं,
कुछ हिंदूवादी हैं, तो कुछ सेक्युलर, कुछ का झुकाव इस्लाम के कट्टर नजरिए पर है...
और बचे बाक़ी दोस्त इन सभी का मजा लेते हैं... किंतु हमारी दोस्ती के सामने ये
बातें कोई मायने नहीं रखती हैं...
इन बीते 25 सालों
में कुछ वक्त ऐसा आया जब सभी दोस्त अपना करियर बनाने और परिवार को संवारने में लगे
हुए थे, काफी-काफी दिनों के बाद मिलना होता, कई-कई बार फोन पर बात होने के बाद भी मिलने
का प्रोग्राम नहीं बन पाता.... लेकिन फिर भी अंदर की आग ठंडी नहीं होने दी, कभी
परिवार सहित मिलते, तो कभी अकेले...
जब कॉलेज में पढ़ते
थे तो साथ पढ़ने वाली लड़कियों को लेकर काफी मजाक होता, सबके जोड़े बनाए जाते,
लेकिन असल ज़िंदगी में राजेश और जया की, कपिल और नीता की ही शादियां हुईं... समय
बीता, सभी की शादियां हुईं, सबकी किस्मत खुली, पत्नियां भी सभी को खुशमिज़ाज
मिलीं, कभी दोस्ती के रंग में भंग नहीं डाला...
बल्कि उसे और गहरा करने में सहयोग किया, जब भी परिवार के साथ मिलते हंस हसकर लोटपोट हो जाते, कुछ किस्से हैं जिनका जिक्र मैं यहां नहीं कर सकता, उसे लेकर सभी की पत्नियां ख़ूब मज़ाक करतीं...
बल्कि उसे और गहरा करने में सहयोग किया, जब भी परिवार के साथ मिलते हंस हसकर लोटपोट हो जाते, कुछ किस्से हैं जिनका जिक्र मैं यहां नहीं कर सकता, उसे लेकर सभी की पत्नियां ख़ूब मज़ाक करतीं...
राम मुझसे काफी छोटा
है, पहले मेरी और राम की मित्रता कुछ कम थी, हमने कोई कैंप भी साथ नहीं किया, पर
मेरी मित्रता शंभु, गिरि, राजेश, वगैरह के माध्यम से हुई या यूं कहें कि राम ने
काफी देर बाद मेरी मित्रता को स्वीकार किया, न जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है...
मैंने और राम ने एक
मज़ाकिया राज़ को काफी सालों तक छिपाकर रखा, लेकिन नेहटौर से आते वक्त राम ने उस
राज खोल दिया,
हंस-हंसकर सभी का
बुरा हाल हो गया...
जब भी किसी कैंप या
कॉलेज के दिनों को याद करते हैं तो अपने प्रिय गुरुजनों की याद न आए, तो ये बेमानी
होगा... NSS में कोहली सर, राशिद सर, अबरार सर, एमपी शर्मा
सर की बात न की जाए, ऐसा नहीं हो सकता, इन सभी गुरूजनों ने एक अमिट छाप हम सभी पर
छाप छोड़ी है... अपने गुरूजनों के साथ बिताए एक-एक पल अपने आपमें पूरा इतिहास लिए
हुए हैं...
एक बार हम राशिद सर
के साथ तलौद कैंप में गए थे, वहां कानपुर की टीम के साथ कुछ कहा-सुनी हो गई थी,
जिसका जिक्र मैंने पहले भी किया है, तो शाम को राशिद सर हमें समझाने लगे - ‘बाहर से आए हो,
झगड़ा मत करो, मैंने सर से कहा हम 10 लोग हैं निपट लेंगे, तब सर ने इधर-उधर देखते
हुए कहा कि 10 नहीं 11 लोग हैं’
राशिद सर ने ख़ुद को
भी हमारे साथ गिन लिया, राशिद सर की ये बात आज भी हमें नहीं भूलती है, राशिद सर की
एक ख़ासियत है- वो वक्त आने पर बच्चे भी बन जाते हैं और विपत्ति आने पर जो आंख
दिखाते हैं तो अच्छे-अच्छों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाया करती है...
कोहली सर और मिसेज़
कोहली के व्यक्तित्व को शब्दों में लिख पाना, कम से कम मेरे बस की बात तो नहीं है
बस इतना कहना चाहता हूं कि इतने सहद्य व्यक्ति मैंने आज तक नहीं देखे, और सच में सर
की प्रेरणा मिसेज़ कोहली- कॉलेज के बाद हम बच्चों को इतना प्यार, सच में कोहली सर
और मिसेज़ कोहली ही दे सकते हैं, आज का तो मुझे नहीं मालूम लेकिन उस वक्त पूर्ण रूप
से गुर-शिष्य की परंपरा को निभाते हुए, माहौल पूरी तरह दोस्ताना था...
जिस तरह हर बटालियन
या ग्रुप का कोई नारा या गीत होता है, उसी तरह हमारा भी एक आराधन गीत है, जो कि शंभुजी
पर केंद्रित करके बनाया गया है... ’अंधेरी रातों में, सूनसान राहों पर’... कोई भी प्रोग्राम हो हमारे ग्रुप का, उसका
समापन शंभुजी के आराधन गीत से होता है... अंत में सभी सदस्य जोर से शंभू बोलते
हैं, तो हमारी शैतानी आंखों में एक चमक बनती है, कि हम शंभू की आड़ में कुछ और बोल
रहे हैं... हमारी इसी शैतानी को
एमपी शर्मा सर ने एक बार कैंप में पकड़ लिया, अपने एक साथी को बताने लगे कि ध्यान से सुनो कि ये शंभू की आड़ में क्या कहते हैं...
एमपी शर्मा सर एक कैंप में |
एमपी शर्मा सर ने एक बार कैंप में पकड़ लिया, अपने एक साथी को बताने लगे कि ध्यान से सुनो कि ये शंभू की आड़ में क्या कहते हैं...
इस तरह 25 साल पहले
शुरू हुआ सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है, इस कारवां में कई और भी दोस्त जुड़े हैं,
जिनका जिक्र आने वाले वक्त में नई कड़ियों में होगा...
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