डिप्टी नज़ीर अहमद-जिन्होंने दिया ‘इंडियन पेनल कोड’ नाम ताज़िरात-ए-हिंद

हिंदुस्तान ने जिन्हें भुला दिया
डिप्टी नज़ीर अहमद ने दिया था इंडियन पेनल कोड नाम 

ताज़िरात-ए-हिंद 
पुरानी हिन्दी फिल्मों में आपने अक्सर जज को सज़ा सुनाते वक्त ताज़िरात-ए-हिंद  शब्द का इस्तेमाल करते हुए ज़रूर सुना होगा, लेकिन शायद ही आप इस शब्द का इज़ाद करने वाले का नाम जानते होंगे, तो चलिए आज आपको इसकी की जानकारी दी जाए...
जिस प्रकार हिन्दी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद का नाम है, ठीक वैसे ही नाम डिप्टी नज़ीर अहमद का उर्दू साहित्य में है, चांदनी चौक की गलियों में रहकर डिप्टी नज़ीर अहमद साहब ने न जाने कितना बड़ा साहित्य रच डाला, कि आज रिसर्च करने वाले स्टुडेंट्स उस स हित्य को पता नहीं कहां-कहां से ढूंढ कर ला रहे हैं, फिर भी जितना काम नज़ीर साहब पर होना चाहिए, उतना हुआ नहीं हैं...
हालांकि मास कम्युनिकेशन का विद्यार्थी होने से पहले 2 साल तक मैं भी साहित्य का विद्यार्थी रहा हूं, लेकिन दुर्भाग्य से मुझे भी डिप्टी नज़ीर अहमद के बारे में जानकारी नहीं थी...
डिप्टी साहब की हवेली के सामने सेल्फी
मेरे एक बहुत ही अजीज़ दोस्त हैं- चंद्रशेखर मल्होत्रा (जिन्हें हम प्यार से शेखर भाई कहते हैं) शेखर भाई चांदनी चौक में अपना व्यवसाय करते हैं, 10 साल पहले तक शेखर भाई वहीं पर रहा भी करते थे, बचपन चांदनी चौक की ही गलियों में बीता है... लिहाजा चांदनी चौकी के गली कुचों से अच्छी तरह वाकिफ़ हैं, या यूं कहें कि शेखर भाई चांदनी चौक के चलते-फिरते एनसाइक्लोपीडिया हैं, तो ज्यादा ठीक होगा... बातचीत में एक दिन डिप्टी नज़ीर अहमद साहब का जिक्र आया, शेखर भाई उन्हीं की हवेली के साथ में रहते थे, कुछ वक्त पहले हवेली का पता कुछ यूं हुआ करता था- 6230, कूचा नवाब मिर्ज़ा, आज की तारीख़ में इस गली का नाम थोड़ा बदला है, गली शिवमंदिर, कटरा बडियान, दिल्ली-110006 हो गया है...  
यही वो दरवाजा है जिसकी कुंडी डिप्टी साहब ने तोड़ी थी
इस हवेली के साथ एक दिलचस्प किस्सा जुड़ा हुआ है जिसे मैं आपको जरूर बताना चाहूंगा, जब डिप्टी नज़ीर अहमद साहब की हवेली बनकर तैयार हुई, तो मेन गेट पर कारपेंटर ने ताला लगाने के लिए कुंडी लगा दी
देखिए आज भी कुंडी टूटी हुई है
इस पर डिप्टी नज़ीर अहमद साहब ने कहा कि यहां कौन चोर आ रहा है, उन्होंने अपने हाथ से उस कुंडी को तोड़ डाला, जो आज तक टूटी हुई है... ये है तो छोटी सी बात लेकिन किसी को भी जज़्बाती कर सकती है...
शेखर भाई साहित्य के प्रेमी तो हैं ही, हिन्दी में भी एमए (जामिआ) भी किया हुआ है, शेखर भाई ने ही डिप्टी नज़ीर अहमद साहब के बारे में मुझे बताया, डिप्टी नज़ीर अहमद की उस हवेली के बारे में बताया, जो चांदनी चौक में अपनी आखिरी सांसे गिन रही हैं...
हवेली की तरफ जाती गली
शेखर भाई और मैं इस मामले में थोड़े जज़्बाती हैं, जहां इतिहास अपनी आख़िरी सांसे गिन रहा हो, वहां हम ख़ामोश रह जाएं... ऐसा नहीं हो सकता...
आज भी ख़ूबसूरत दिखता है दरवाजा
शेखर भाई इस मामले में खुशनसीब रहे कि उन्होंने डिप्टी नज़ीर अहमद के पोते, जिनको सभी प्यार से बाबा कहा करते थे, बाबा आस-पास के इलाके में सबकी मदद करने के लिए पॉपुलर थे, शेखर भाई ने उनके साथ लंबा वक्त बिताया औऱ डिप्टी नज़ीर अहमद के बारे में उन्हीं के पोते से फर्स्ट हैंड जानकारी हासिल की...
इस हवेली के बारे में एक और किस्सा कहा जाता है, वो है इस हवेली के नीचे से जामा मस्जिद तक एक सुरंग जाने की कहानी, हालांकि ये बात कपोल कल्पित थी, फिर सालों तक कही जाती रही... 
आज भी हवेली का वैभव मौजूद है
डिप्टी साहब तब तक जीवित रहे वे इस हवेली पर जान छिड़कते रहे, डिप्टी साहब के बाद उनके पोते बाबा साहब भी जब तक जिंदा रहे, तब तक हवेली को मेंनटेन करते रहे, लेकिन चौथी पीढ़ी में वो जुनून की कमी है, कुछ हालात भी प्नेरतिकूल हो गए हैं...




हवेली की तरफ जाती गली
























डिप्टीशब्द की दिलचस्प कहानी
नज़ीर साहब के नाम के आगे डिप्टी शब्द जुड़ने की भी बड़ी ही दिलचस्प कहानी है...
नज़ीर अहमद साहब का जन्म 1836 में, बिजनौर जिले के रेहड में हुआ, डिप्टी साबह के पिता मौलवी सआदत अली, अरबी और फ़ारसी के बड़े जानकार थे, डिप्टी साहब ने अपनी शुरूआती तालीम अपने पिता से ही हासिल की, 1842 में जब डिप्टी साहब केवल 6 साल के ही थे, इनके पिता इन्हें दिल्ली की औरंगाबादी मस्जिद में मौलवी अब्दुल ख़ालिक़ के पास छोड़ गए, डिप्टी साहब ने मौलवी अब्दुल हक़ औरंगाबादी से अरबी, फ़ारसी और शिक्षा शास्त्र में निपुणता हासिल की, 1845 में जब डिप्टी साहब केवल 9 साल के ही थे, इनका दिल्ली कॉलेज में दाख़िला मिल गया, पढ़ाई ख़त्म करने के बाद गुजरात के एक स्कूल में 40 रुपए प्रति महीने की तनख़्वाह पर टीचर हो गए, 2 साल बाद टीचर के पद से इस्तीफ़ा देकर कानपुर आ गए, जहां डिप्टी इंस्पेक्टर आफ़ स्कूल के पद पर इनकी नियुक्ति हुई, 1857 के ग़दर के बाद इसी पद पर इलाहाबाद आ गए, ग़दर के ज़माने में इन्होंने एक अंग्रेज़ महिला की जान बचाई थी, लिहाजा इनकी प्रमोशन हो गई और डिप्टी साहब इंस्पेक्टर बना दिए गए, नज़ीर अहमद के भीतर ज्ञान अर्जित करने की अथाह भूख थी, वह कुछ भी सीखने का मौक़ा कभी हाथ से जाने नहीं देते थे, इलाहाबाद प्रवास के दौरान डिप्टी साहब ने अंग्रेज़ी भाषा पर अधिकार जमा लिया, बस फिर क्या था, निकल पड़ी गाड़ी पूरी रफ्तार से, डिप्टी साबह ने इंडियन पेनल कोड का ताज़िरात-एहिंद नाम से उर्दू में अनुवाद किया, अनुवाद से ख़ुश होकर लेफ़्निनेंट गवर्नर सर विलियम मेयर ने डिप्टी  साहब को तहसीलदार बना दिया, बाद में प्रमोशन के बाद 1863 में, जब डिप्टी साहब की उम्र मात्र 27 साल थी, कलक्टर बन गए...
डिप्टी साबह की पॉपुलेरिटी और योग्यता के बारे में जब निज़ाम हैदराबाद को पता चला तो 1877 में डिप्टी साहब  को मोटी तनख़्वाह पर अपने यहां नौकरी पर रख लिया, इसके बाद नज़ीर अहमद अब डिप्टी नज़ीर अहमद कहलाए जाने लगे थे और जीवन भर लोग इन्हें सम्मानपूर्वक इसी नाम से पुकारते रहे...


1884 में डिप्टी नज़ीर अहमद इस्तीफ़ा देकर दिल्ली चले आए, और और चांदनी चौक को ही अपना परमानेंट निवास बना लिया... चांदनी चौक आते ही डिप्टी नज़ीर अहमद की साहित्यिक सक्रियता बहुत बढ़ गई, डिप्टी साहब ने एक के बाद एक कई अहम किताबों की रचना की, डिप्टी साबह के हाथ में कपकपी का रोग राशालग गया था, ख़ुद नहीं लिख पाते थे तो दूसरों को बोलकर लिखवाते थे, उनके आख़िरी दम तक लिखने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा, और 1912 को डिप्टी नज़ीर अहमद साहब ने आख़िरी सांस ली...

डिप्टी नज़ीर अहमद की प्रमुख रचनाएं
उपन्यास----
मिरातुल-उरूस
बिनातुन्नआश
तौबातुन्नसूह
इब्नुल-वक़्त
मुह्सिनात
अयाम्मा
रूयाए-सादिक़ा
मुंतख़ब-अल-हिकायात
नैतिक और धार्मिक किताबें-----
अल्हुक़ूक़-वल-फ़रायज़
इज्तेहाद
मुहातुल-उम्मा
मुबादिल-हिकमत
सामावात
मोएज़-हुस्ना
चंद-पंद
व्याकरण संबंधी किताबें
रस्मुल-ख़त
सर्फ़े-सग़ीर
मायुग़्नीका-फ़िस्सर्फ़
पुरस्कार---------
शसुलउलेमा (विद्वानों में सूर्य) 1898
एडनबर्ग यूनिवर्सिटी ने एलएलडी की उपाधि दी- 1902
पंजाब यूनिवर्सिटी ने डाक्टर ऑफ़ ऑरिएंटल स्टडीज़ की मानद उपाधि प्रदान की- 1910

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