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Showing posts from January, 2011

अब नहीं आएंगे भूकंप ?

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क्या धरती से भूकंप को खत्म किया जा सकता है ? क्या भूकंप की तबाही से लाखों लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता है ? क्या अरबों रुपयों के नक़सान को किसी भी तरह से रोका जा सकता है ? क्या भूकंप के खौफ़ को छू मंतर किया जा सकता है ? और इन सबसे बड़ा सवाल क्या भूकंप के आने से पहले ही उसकी विनाशकारी ऊर्जा को क़ैद करके बिजली में तब्दील किया जा सकता है ? अगर ऐसा हो जाता है तो ये तय है कि भूकंप गुज़रे ज़माने की बात बनाया जा सकता है। जल्द ही इसी विषय को मैं आपके सामने लेकर आने वाला हूं...

क्या कहता है हिमालय ? बैंगलुरु और हैदराबाद खिसक गए अपनी जगह से

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2004 को आए सुनामी के बाद क्या कहता है हिमालय ? - बैंगलुरु और हैदराबाद खिसक गए अपनी जगह से ?                  ''हिमालयन स्टडीज़'' दिसंबर 2004 में सुमात्रा द्वीप समूह में आये सुनामी के बाद भारत के दो शहर अपनी जगह से खिसक गए। ये हैरान करने वाली बात सामने आई है एक स्टडी से। और ये स्टडी की है...वाडिया इंस्टीट्यूट आफ़ हिमालयन जियोलाजी देहरादून में डॉ.परमेश बैनर्जी ने।  भूकंप और उसके प्रभावों का अध्ययन करने में जुटे हुए  थे डॉ.परमेश बैनर्जी। इस दिशा में उनकी मदद की जीपीएस तकनीक ने।  डॉ.परमेश बनर्जी आखिर जीपीएस तकनीक होती क्या है ? स्पेस में एक सेटेलाइट होता है जो धरती का चक्कर लगाता रहता है। इससे लगातार प्रकाश के वेग से चलने वाले माइक्रोवेव सिग्नल्स जनरेट होते रहते हैं। ये सिग्नल एक छोटे रिसिवर के जरिए ग्रहण किये जाते हैं। इन्हें प्रोसेस करके धरती की सतह पर हुई छोटी से छोटी हलचल तक का पता लगाया जा सकता है।  ये मैप डॉ.परमेश बै...

खूनी भंडारा...अमृत की टपकती बूंदे

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(मैंने आपसे वादा किया था कि आपको अब्दुल रहीम खानखाना की एक अद्भुत रचना यानी एक ऐसी इंजीनियरिंग से रुबरु कराउंगा...जो आज के इंजीनियरों को गज़ब की प्रेरणा दे सकता है। और कुछ इसी तरह का विकास हमें चाहिए जो केवल हमारे लिए ही न हो। बल्कि उसका फायदा आने वाली पीढ़ियों को भी भरपूर मिलता रहे। उसी कड़ी में पेश है )    ( मुग़लकालीन टेक्नोलोजी.....) खूनी भंडारा   जो बुझा रहा है पीढ़ियों की प्यास...लगातार...बिना रुके...बिना थके... तक़रीबन 100 फीट ज़मीन के नीचे दुनिया की एकमात्र जिंदा ऐसी सुरंग है जो अमृत जैसा पानी देती है। जो नापती है 4 किलोमीटर लंबा सफर। हैरान होने के लिए इतना ही काफी नहीं है। पिछले 400 सालों से इसने कई पीढ़ियों की प्यास बुझाई है...आज भी ये सुरंग लाखों लोगों की प्यास बुझा रही है।   यही है खूनी भंडारा का बाहरी हिस्सा ये जो आप कुओं की लंबी कतार देख रहे हैं ये कोई साधारण कुएं नहीं हैं। ये उसी खूनी भंडारे के निशान हैं जिसकी शुरुआत 400 साल पहले की गई थी। दरअसल इन कुओं के नीचे एक लंबी सुरंग है जो इनको 108 कुओं को आपस में जोड़ती है... ...

आगाज़

एक मित्र है डा. मुकुल श्रीवास्तव... ज्यादा पुराना तो नहीं पर नया भी नहीं.... मिला उसने कहा तेरा ब्लॉग नहीं है बुरा लगा... क्योंकि मैं भी टेक्नो मित्र टाइप का हूँ तो लगा ब्लॉग होना चाहिए तो बना लिया ब्लॉग अब आपकी बारी है... बताएं क्या लिखूं और क्यों लिखूं इन्तिज़ार रहेगा आभार शंभुनाथ