क्या कहता है हिमालय ? बैंगलुरु और हैदराबाद खिसक गए अपनी जगह से
2004 को आए सुनामी के बाद क्या कहता है हिमालय ?
-बैंगलुरु और हैदराबाद खिसक गए अपनी जगह से ?
''हिमालयन स्टडीज़''
दिसंबर 2004 में सुमात्रा द्वीप समूह में आये सुनामी के बाद भारत के दो शहर अपनी जगह से खिसक गए। ये हैरान करने वाली बात सामने आई है एक स्टडी से। और ये स्टडी की है...वाडिया
इंस्टीट्यूट आफ़ हिमालयन जियोलाजी देहरादून में डॉ.परमेश बैनर्जी ने। भूकंप और उसके प्रभावों का अध्ययन करने में जुटे हुए थे डॉ.परमेश बैनर्जी। इस दिशा में उनकी मदद की जीपीएस तकनीक ने।
आखिर जीपीएस तकनीक होती क्या है ? स्पेस में एक सेटेलाइट होता है जो धरती का चक्कर लगाता रहता है। इससे लगातार प्रकाश के वेग से चलने वाले माइक्रोवेव सिग्नल्स जनरेट होते रहते हैं। ये सिग्नल एक छोटे रिसिवर के जरिए ग्रहण किये जाते हैं। इन्हें प्रोसेस करके धरती की सतह पर हुई छोटी से छोटी हलचल तक का पता लगाया जा सकता है।
यह इतनी कारगर है कि धरती की सतह पर हुई 2.3 मि.मी. जितनी सूक्ष्म हलचलों को भी माप लेती है... धरती की उपरी सतह छोटी-छोटी कई टेक्टोनिक प्लेटों से मिलकर बनी होती हैं...जिनके नीचे धरती की पूरी सतह शहद के समान गाढ़े तरल से बनी होती है...इसे एस्थेनोस्फेयर कहते हैं। इस पर तैरते हुए ये टेक्टोनिक प्लेट कभी कभी एक दूसरे से टकरा जाती हैं। जिसका नतीजा भूकंप होता है।
भूकंप की जगह तो उसका प्रभाव दिखता ही है लेकिन जीपीएस तकनीक के जरिये भूकंप केन्द्र से सैकड़ों किलोमीटर दूर तक धरती के कौन कौन से हिस्से इससे प्रभावित हुए हैं, ये भी पता चल जाता है।
कुछ-कुछ इसी तरह की जानकारी डॉ.परमेश बैनर्जी को उनके जीपीएस स्टेशन से हासिल डाटा से मिली है। इस डाटा से पता चलता है कि सुनामी के बाद इंडियन प्लेट का तक़रीबन 10.15 मीटर
चौड़ा और लगभग 1400 किलोमीटर लंबा हिस्सा पूर्व दिशा में मौजूद ''सुन्डा'' प्लेट के अंदर चला गया था... जिसकी वजह से कुछ दक्षिण भारतीय शहर, जैसे बैंगलुरु 15 मि.मी. और हैदराबाद 8 मि.मी. पूर्व दिशा की तरफ खिसक गए... एक बड़े भूकंप के बाद धरती की उपरी सतह तो शांत हो जाती है लेकिन अंदरूनी हलचल जारी रहती हैं...चूंकि भूकंप प्रभावित हिस्से का आयतन बहुत ज्यादा होता है इसलिये एक बड़े भूकंप के बाद उस क्षेत्र को वापस सामान्य अवस्था तक लौटने में सालों लग सकते हैं... और एस्थेनोस्फेयर में इस तरह उत्पन्न तरंगें हजारों किलोमीटर दूर तक जा सकती हैं जिससे उस जगह भूकंप की आशंका बढ़ जाती है...
हांलाकि इसके जरिए अभी तक भूकंप का पूर्वानुमान लगाने में सफलता नहीं मिल सकी है लेकिन हो सकता है कि भविष्य में ये तकनीक आने वाले भूकम्प की आहट भी सुन ले।
-बैंगलुरु और हैदराबाद खिसक गए अपनी जगह से ?
''हिमालयन स्टडीज़''
दिसंबर 2004 में सुमात्रा द्वीप समूह में आये सुनामी के बाद भारत के दो शहर अपनी जगह से खिसक गए। ये हैरान करने वाली बात सामने आई है एक स्टडी से। और ये स्टडी की है...वाडिया
इंस्टीट्यूट आफ़ हिमालयन जियोलाजी देहरादून में डॉ.परमेश बैनर्जी ने। भूकंप और उसके प्रभावों का अध्ययन करने में जुटे हुए थे डॉ.परमेश बैनर्जी। इस दिशा में उनकी मदद की जीपीएस तकनीक ने।
डॉ.परमेश बनर्जी |
ये मैप डॉ.परमेश बैनर्जी के अध्ययन के बाद सामने आया है |
यह इतनी कारगर है कि धरती की सतह पर हुई 2.3 मि.मी. जितनी सूक्ष्म हलचलों को भी माप लेती है... धरती की उपरी सतह छोटी-छोटी कई टेक्टोनिक प्लेटों से मिलकर बनी होती हैं...जिनके नीचे धरती की पूरी सतह शहद के समान गाढ़े तरल से बनी होती है...इसे एस्थेनोस्फेयर कहते हैं। इस पर तैरते हुए ये टेक्टोनिक प्लेट कभी कभी एक दूसरे से टकरा जाती हैं। जिसका नतीजा भूकंप होता है।
सुमात्रा के भूकंप ने सुनामी जैसी तबाही मचाई थी |
भूकंप की जगह तो उसका प्रभाव दिखता ही है लेकिन जीपीएस तकनीक के जरिये भूकंप केन्द्र से सैकड़ों किलोमीटर दूर तक धरती के कौन कौन से हिस्से इससे प्रभावित हुए हैं, ये भी पता चल जाता है।
जीपीएस-एक छोटा सा यंत्र कमाल कर रहा है |
चौड़ा और लगभग 1400 किलोमीटर लंबा हिस्सा पूर्व दिशा में मौजूद ''सुन्डा'' प्लेट के अंदर चला गया था... जिसकी वजह से कुछ दक्षिण भारतीय शहर, जैसे बैंगलुरु 15 मि.मी. और हैदराबाद 8 मि.मी. पूर्व दिशा की तरफ खिसक गए... एक बड़े भूकंप के बाद धरती की उपरी सतह तो शांत हो जाती है लेकिन अंदरूनी हलचल जारी रहती हैं...चूंकि भूकंप प्रभावित हिस्से का आयतन बहुत ज्यादा होता है इसलिये एक बड़े भूकंप के बाद उस क्षेत्र को वापस सामान्य अवस्था तक लौटने में सालों लग सकते हैं... और एस्थेनोस्फेयर में इस तरह उत्पन्न तरंगें हजारों किलोमीटर दूर तक जा सकती हैं जिससे उस जगह भूकंप की आशंका बढ़ जाती है...
आईआईटी जैसे संस्थानों में भी अब जीपीएस तकनीक पर मंथन किया जाने लगा है |
लो आज शहर हटने की खबर बताई तुमने,,उधर रात में पाकिस्तान में भूकंप के तेज झटके आ गए। आखिर इसमें कोई संबंध तो नहीं रात में चार बजे यही सोच रहा हूं। अच्छी जानकारी आसान शब्दों में।
ReplyDeleteयार इतनी रोचक जानकारी इतने सरल तरीके से तुम्हारे जैसा ही कोई शख्स बता सकता है बधाई
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