सांप्रदायिकता पर समान प्रहार कब ?

ये चारो चित्र मेरी कोरी कल्पना मात्र हैं...

ऐसा भारतीय इतिहास में कभी नहीं हुआ, होता भी कैसे ?

कुछ स्वार्थ पिपासुओं ने ऐसी संस्कृति विकसित होने ही नहीं दी, मुझे लगता है जिसमें गांधी जी इन सभी के सिरमौर थे, ऐसा मुझे लगता है- जरूरी नहीं आपको भी लगे... जिसे आज़ादी के बाद कथित पंडित नेहरू 'जी' ने वामपंथियों के साथ मिलकर एक षड़यंत्र के साथ फुल रफ्तार से आगे बढ़ाया... और ये वो संस्कृति थी, जिसमें दूसरी-तीसरी-चौथी पीढ़ी विकसित होने लगी... उन्हें लगने लगा कि यही संस्कृति ही सेकुलरिज़्म की संस्कृति है... ऐसे ही भारत चलेगा...

इसी उहापोह में भारत के सबसे अहम 6,7 दशक बीत गए... यानी इस दौर में ये एकतरफा संस्कृति रूढ़ होती चली गई... गोधरा कांड के बाद अतार्किक चीजों को इतना आगे बढ़ाया गया कि उसकी स्वभाविक प्रतिक्रिया 2014 में दिखी... पोस्ट गोधरा के बाद इतनी सारी चीजें एक साथ घटित हो रहीं थी कि भारतीय जनता ने 'मोदी' नाम के विचार के साथ स्वभाविक और अस्वभाविक अपना मानसिक गठबंधन बना लिया... वो भी इसलिए हो पाया, क्योंकि इस बीच मीडिया का सबसे सशक्त माध्यम सोशल मीडिया धीरे-धीरे अंडर करंट विकसित हो रहा था, जिसे इन जैसे लोगों ने उस गंभीरता से नहीं लिया, जिस गंभीरता से हम जैसे यानी विरोधी विचारधारा के लोगों ने लिया...क्योंकि इनके पास अपनी बात रखने का दूसरा कोई माध्यम नहीं था... या ये भी कह सकते हैं इनकी कोई सुनने वाला नहीं था... इसलिए अब जब हम जैसे लोग अपनी बात कहते हैं तो 6,7 दशक से एकतरफा सोच में पले-बढ़े लोगों का तिलमिलाना जायज हो जाता है... 

ऐसी तस्वीरे हम देखना चाहते हैं और ये हमारी जायज मांग भी है... लेकिन ऐसा हो नहीं पाया... 
देश में कितने सारे ऐसे मौके आए जब ये चुप रहे, हम जैसों के पास कोई प्लेटफॉर्म नहीं थो बोलने के लिए लेकिन इनके पास तो था, फिर भी खामोश रहे, जब आप अपने निजी स्वार्थ पर सच्चाई को छिपाने का काम करते हैं तो ऐसे 'अच्छे दिन' आते ही हैं, वो इन जैसों के लिए बुरे साबित हो जाएं तो उसमें हम क्या करें...
 ,,,,#हिंदी_ब्लॉगिंग #हिन्दी_ब्लॉगिंग

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