'दोस्ती के 25 साल... और परिवार बढ़ता गया' -II
दूसरी कड़ी...
Silver Jubilee Year 1990-2015
पिछली कड़ी से जारी...
NSS परिवार में, जब से हमारा ये सिलसिला शुरू हुआ, तब से लेकर 25 वें साल तक आते-आते हमारे बीच का
सद्भावना वाला कैमिकल अपना केरैक्टर ले चुका था, जिसका जिक्र मैंने पहली कड़ी में किया था, यानी दोस्ती का कैमिकल... जिसने भी इस कैमिकल का इस्तेमाल
किया, वो आज 25 साल बाद भी एक हैं, उस
दोस्ती का रंग और भी गाढ़ा होता गया, बल्कि और होता जा रहा है, और जिसने इस कैमिकल
की अहमियत को नहीं समझा या नकारा या फिर नजरअंदाज किया, वो छिटक गया, दूर हो
गया...
25 साल बाद भी गर्मजोशी में कमी नहीं |
सुषमा स्वराज ने भी हमारे साथ अपने अनुभव बांटे |
हमें याद है यदि हमारी किसी सीनियर से मुलाकात हुई भी, लेकिन उस मुलाकात का आगे का ठहराव या तो बड़े भाई के तौर पर देखने को मिला, या फिर सह्रद सखा के तौर पर मिला, सलाहकार ऐसा कि कोई अभिभावक भी
कोई इनमें जुनियर-सीनियर का भेद नहीं कर सकता |
ऐसा हो, तो कहना मुश्किल हो जाए... कई बार हमारे सामने ऐसी स्थितियां आईं भी... धर्म संकट बड़ा लेकिन... आखिरी परिणाम- जीवन संंवर गया...
किसका जिक्र करें, किसका छोड़ दें... बहुत ही मुश्किल है...
मैं एक शख्स का जिक्र करना चाहता हूं, जिसका नाम है मोहसिन ज़ैदी, गर्माहट का आलम ये है कि लंदन में बैठे हुए उसके मनमें आता है कि क्यों न कुछ किया जाए, वो अपने गांव में NSS का एक कैंप आयोजित करता है और चल देता है अपने बड़े भाईयों के 25 साल
कभी मोहसिन जैदी ऐसे न थे |
का जश्न मनाने के लिए, अब इसे कोई बाहर से देखकर क्या समझेगा, तकनीकी तौर पर देखा जाएगा तो मोहसिन हम सबसे छोटा है, लेकिन उसके सीने में धधकती आग का/आंच का कोई अनुमान लगा सकता है क्या ?
बिल्कुल नहीं... हम भी केवल उस गर्माहट को महसूस ही कर सकते हैं... और हर पल कर रहे हैं। जियो मोहसिन...
शेखर और योगेंद्र गिरि |
आज के गिरि, राजेश, शेखर |
शायद राजेश भाई को ये सब याद होगा...
हमारा गिरि दिल का, जेब का, यारी का, दिलफेंक दिलदार है, हमने गिरि की जेब को हमेशा अपना ही माना है और इन 25 सालों में हमेशा मानते आए हैं, और उस जेब पर आज तक हमने कब्जा जमाया हुआ है, हम
दिसंबर का कैंप, ठंड के कपड़े पहने अपने वकार भाई |
दुआ करते हैं, गिरि की इस दरियादिली को ऊपरवाला यूं ही बनाए रखे, उसमें और बरकत दे... अगर किसी को कभी गलती से भगवान मिल जाएं, और पूछने लगे कि मांग कैसा दोस्त चाहिए तुझे, तो हमारी बिन मांगे सलाह है, भगवान से आंख बंद करके मांग लेना गिरि जैसा दोस्त चाहिए, कसम से कभी पछताना नहीं पड़ेगा...
छोटे से emblem ने, क्या कुछ कर गुजरने की हिम्मत नहीं दी |
इन बीते 25 सालों में कम्युनिकेशन के कई माध्यम रहे हैं, हां हमारे वक्त में मोबाइल फोन नहीं था, बल्कि जिसे लैंडलाइन कहा जाता है, वो भी बहुत कम ही हुआ करते थे... फिर भी कम्युनिकेशन में किसी तरह की कमी हमने कभी नहीं देखी, बल्कि
कम्युनिकेशन आज के मुकाबले ज्यादा प्रभावशाली था, हम आपस में चिट्ठियों के जरिए कम्युनिकेशन बड़े आराम से कर लिया करते थे, जिसकी सबसे अच्छी और खास बात ये है कि वो आज भी हमारे पास सुरक्थीषित हैं...एक खास बात और- हम जो आपस में पत्र-व्यवहार
करते थे, उसे हमने आज तक संजोकर रखा हुआ है, हमारे कई दोस्त सुब्बारव जी को जरूर जानते होंगे, आपको याद दिलाता हूं- सबके लिए खुला है मंदिर है ये हमारा...
कम्युनिकेशन आज के मुकाबले ज्यादा प्रभावशाली था, हम आपस में चिट्ठियों के जरिए कम्युनिकेशन बड़े आराम से कर लिया करते थे, जिसकी सबसे अच्छी और खास बात ये है कि वो आज भी हमारे पास सुरक्थीषित हैं...एक खास बात और- हम जो आपस में पत्र-व्यवहार
सुब्बाराव जी का पत्र |
इसी तरह के कई पत्र आज भी हमारे पास दोस्ती की यादगार धरोहर के रूप में मौजूद हैं, जो कैसे भी वक्त में रोमांचित करने के लिए काफी है...
आज भी ये खत रोम-रोम में आंच महसूस करा देता है |
केरल के कोट्टयम से, तो कभी कर्नाटक के धारवाड़ से, कभी अजमेर से तो कभी गुजरात के खेड़ा, नाडिया, अहमदाबाद से आए सैकड़ों की तदात में खत आज भी हमारे पास सुरक्षित हैं...
ये सब अपने आपमें हमारी दोस्ती के 25 साल के ऐतिहासिक पन्ने हैं...
हम दोस्त कई बार दिल्ली में रहते हुए भी आपसे में पोस्टकार्ड के जरिए कम्युनिकेशन कर लिया करते थे...
शायद हमारी आज की पीढ़ी इस पर यकीन न करे, लेकिन ये है तो हकीकत..
यादगार |
यादगार |
यादगार |
जब भी हमारा NSS का कोई कैंप खत्म होने को होता था, तो हम सब यादगार के तौर पर अपने मित्रों से ऑटोग्राफ ले लिया करते थे, जिनको देखकर हम इतिहास की सुनहरी यादों में आज भी खो जाते हैं,
प्यारभरा एक संदेश |
समझ ही गए न आप, इन यादगार पन्नों की हमारे लिए क्या अहमियत है,
लगातार आते परिवर्तन की दास्तां |
लगातार आते परिवर्तन की दास्तां |
आरडी परेड बैच |
FANS |
11 सितंबर 2014 में जब हम जयपुर के ट्रिप पर चार दोस्त गए हुए थे (राजेश, शेखर, गिरि,शंभु) वहीं पर राजेश जी ने जब ये जिक्र छेड़ा कि हमारी दोस्ती के 25 साल होने जा रहे हैं, मैं आपको बता नहीं सकता कि हमारे दिल-दिमाग की क्या हालत हुई थी, और वहीं तय हुआ कि हम अपनी दोस्ती की सिल्वर जुबली अलग अंदाज में मनाएंगे, जयपुर से दिल्ली पहुंचने के बाद सबसे पहले राजेश भाई ने सिल्वर जुबली सेलिब्रेशन का फेसबुक पेज तैयार किया, जिसके लिए हमारे दोस्त किशोर कुमार को एक लोगो डिजाइन की जिम्मेदारी सौंपी गई...
दोस्ती का डिजाइन |
दोस्ती, आप भी इसका अनुभव कीजिए.... फिर बारी आई अपने इस फेसबुक पेज से अपने दोस्तों को जोड़ने की, सभी ने अपनी-अपनी पुरानी यादगार तस्वीरें इस पेज पर पोस्ट करनी शुरू कर दी, धीरे-धीरे हमारा Rich होता गया...
ये है हमारा फेसबुक पेज |
तीसरी कड़ी में जल्द ही मिलते हैं
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